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Showing posts from May, 2021

अधिगम

  अधिगम= अधिगम शब्द अंग्रेजी के LEARNING का हिंदी रूपांतरण है जिसका शाब्दिक अर्थ - सीखना अथवा ग्रहण करना होता है ★  बालक अपने जन्म से वृद्धावस्था तक निरंतर सीखता रहता है ★ अधिगम एक निरंतर चलने वाली सार्वभौमिक प्रक्रिया है  ★ अधिगम किसी स्थिति के प्रति की जाने वाली अनुक्रिया को कहते हैं  ★ अर्जित या सिखी गयी अनुक्रिया ही अधिगम कहलाती है ★ सामान्य शब्दों में अधिगम का शाब्दिक अर्थ सीखना, सीख कर व्यवहार में परिवर्तन करना ,  नवीन ज्ञान अर्जित करने की प्रक्रिया से होता है परिभाषाएं ■  वुडवर्थ के अनुसार - 1 नवीन ज्ञान अर्जन करने की प्रक्रिया अधिगम है  2 सीखना विकास की प्रक्रिया है  ■  गिलफोर्ड के अनुसार  -  व्यवहार के द्वारा व्यवहार में परिवर्तन ही अधिगम है  ■  गेट्स के अनुसार  - अनुभव एवं प्रशिक्षण के माध्यम से व्यवहार में परिवर्तन अधिगम कहलाता है   ■  क्रो एंड क्रो के अनुसार  - आदत, ज्ञान, अभिरुचि एवं अभिवृत्ति में वृद्धि की प्रक्रिया अधिगम कहलाती है ■  क्रोनबेक के अनुसार  - अनुभव के परिणाम स्वरूप ...

विकास के सिद्धांत

 1 मनोसामाजिक विकास सिद्धांत : प्रतिपादक - एरिक इरिक्सन ■ प्रारंभिक दशा में इरिक्सन व फ्रॉयड के सिद्धांत में काफी समानता थी तथा इरिक्सन, सिगमंड फ्रायड के सिद्धांत का समर्थक भी था, ★ इरिकसन का मानना है कि बालक के विकास पर काम-प्रवृत्ति का नहीं बल्कि सामाजिक अनुभूतियों का प्रभाव पड़ता है ★ इरिक्सन   ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘childhood and society, 1963’ में मनोसामाजिक  विकास की 8 अवस्थाएं    बताई-  Trick - विश्वास और स्वतंत्रता के साथ पहल की किंतु अहंकारी बन गए फिर परिश्रम करके पहचान बनाई तो  घनिष्ठता मिली और जनन भी संपूर्ण हुुआ 1- विश्वास बना अविश्वास (0-2 वर्ष) 2- स्वतंत्रता बनाम लज्जा   (3 से 4 वर्ष) 3- पहल बनाम दोषिता    (4 से 6 वर्ष) 4- परिश्रम बनाम हीनता  (7 से 12 वर्ष) 5 पहचान बनाम भूमिका भ्रांति (13 से 19 वर्ष) 6 घनिष्ठता बनाना अलगाव  ( 19 से 35 वर्ष) 7 उत्पादकता बनाम निष्क्रियता  (36 से 55 वर्ष) 8 सम्पूर्णता बनाम नैराश्य ( 55 वर्ष के बाद) एरिक्सन के सिद्धांत के गुण-  समाज एवं व्यक्ति की भूमिका ...

बाल विकास के आयाम

  बाल विकास के आयाम 1 गत्यात्मक विकास- गत्यात्मक विकास और शारीरिक विकास में गहरा संबंध होता है यह एक दूसरे के पूरक होते हैं गत्यात्मक विकास की प्रक्रिया : ●  एक माह का बालक अपने सिर को ऊपर उठा लेता है ●  4 माह का बालक सारे के साथ बैठ सकता है ●  6 माह का बालक बिना सारे के बैठ सकता है ●  8 माह का बालक घुटनों के बल चलने लगता हैं ●  10 माह का बालक सारे के साथ खड़ा हो सकता है ● 12 माह का बालक बिना सारे के खड़ा हो सकता है ● 18 माह का बालक चलने लगता है ●  24 माह का बालक दौड़ने लगता है ●  36 माह का बालक अपने स्थान से उछलकर किसी भी दिशा में घूम सकता है ●  5 बरस का बालक अपने वजन का आधा वजन उठा सकता है ● 10 बरस का बालक अपने वजन के बराबर वजन उठा सकता है ● 18 बरस का बालक अपने वजन का दोगुना वजन उठा सकता है 2  मानसिक विकास -  मानसिक विकास वह योग्यता है जिसमे व्यक्ति  अपनी समस्याओं  का समाधान कर  वातावरण का शिकार होने से बचता है ■ शैशवावस्था में बालको का सर्वाधिक एंव तीव्र गति से मानसिक विकास होता है ■ पांच वर्ष तक के बालको का 90•/. ...

विकास की अवस्थाएं

  विकास की अवस्थाएं   श्रीमती हरलॉक के अनुसार   गर्भावस्था   - गर्भधारण से जन्म तक शैशवावस्था  - जन्म से 2 सप्ताह तक बचपनावस्था - 2 सप्ताह से 2 वर्ष तक पूर्व बाल्यावस्था - 3 से 6 वर्ष तक उत्तर बाल्यावस्था  - 7 से 14 वर्ष तक पूर्व किशोरावस्था  - 15 से 17 वर्ष तक उत्तर किशोरावस्था - 18 से 21 वर्ष तक प्रौढ़ावस्था -  21 वर्ष के बाद रॉस के अनुसार   शैशवावस्था - जन्म से 2 वर्ष  पूर्व बाल्यावस्था - 3 से 6 वर्ष  उत्तर बाल्यावस्था - 7 से 12 वर्ष  किशोरावस्था - 13 से 18 वर्ष  प्रौढ़ावस्था  - 18 वर्ष के बाद   जॉन के अनुसार  शैशवावस्था - जन्म से 6 वर्ष तक बाल्यावस्था  -7 से 12 वर्ष तक किशोरावस्था  - 13 से 18 वर्ष प्रौढ़ावस्था  -18 वर्ष के बाद शैशवावस्था :  0-2/0-5 वर्ष ★  बाल विकास की महत्वपूर्ण अवस्था ★  बाल विकास की सर्वाधिक दर ★  भावी जीवन की आधारशिला ■ उपनाम :   ◆ सीखने का आदर्श काल   ◆ जीवन का महत्वपूर्ण काल   ◆ भावी जीवन की आधारशिला   ◆ संस्कारों...

अभिवृद्धि और विकास

  अभिवृद्धि- बालको की शारीरिक सरंचना में होने वाला बाह्य परिवर्तन जिसका मापन संभव हो अभिवृद्धि कहलाती है,जैसे-  ऊंचाई , चौड़ाई, आकर का बढ़ना ■ अभिवृद्धि की निश्चित दिशा व क्रम होता है ■ अभिवृद्धि पर वंशक्रम का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है ■ अभिवृद्धि गर्भावस्था से प्रारंभ होकर  किशोरावस्था तक चलती है ■ अभिवृद्धि का सकुंचित क्षेत्र होता हैं ■ अभिवृद्धि एक मात्रात्मक प्रकिया है ■  अभिवृद्धि का मापन संभव है ■ अभिवृद्धि का स्वरूप बाह्य होता है ■ अभिवृद्धि एक निश्चित आयु के बाद रुक जाती है ■ अभिवृद्धि का संबंध शारीरिक और मानसिक परिपक्वता से  है  ■ अभिवृद्धि में व्यक्तिगत विभेद होते है अथार्थ प्रत्येक व्यक्ति में अभिवृद्धि समान नही होती अभिवृद्धि की परिभाषा ■  जॉन डीवी के अनुसार- अभिवृद्धि स्वंय होती है  उसे लादा नही जा सकता ■  फ्रेंक के अनुसार- कोशिकीय गुणात्मक वृद्वि ही         अभिवृद्धि है ■  हरलॉक के अनुसार- लंबाई , वजन , आकार, में वृद्धि अभिवृद्धि है, परन्तु इसका संगठित रूप विकास है ■ सोरेंसन के अनुसार- बालको की शारीरिक...

बाल विकास

बाल विकास का इतिहास  ◆  1628 ईस्वी में यूरोपीय विद्वान कोमेनियस ने बाल शिक्षा को लेकर school of infency नामक शिशु पाठशाला की शुरुआत की  ●   18 वीं शताब्दी में जर्मनी के विद्वान पेस्टोलॉजी ने 1774 ईस्वी में अपने 3 वर्ष के पुत्र के विकास को ध्यान में रखते हुए बेबी-बायोग्राफी नामक पुस्तक की रचना की ●  इसका प्रभाव जर्मनी के बच्चों के डॉक्टर टाइडमेन पर पड़ा जिन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में बालक के विकास  में गति प्रदान की  ◆19वीं सदी में श्रीमती विक्टोरिया हरलॉक ने पहली बार कहा कि एक बालक का विकास गर्भावस्था से प्रारंभ होता है और उसके विचारों से बाल मनोविज्ञान, बाल विकास बना  ★  अमेरिकी विद्वान स्टेनली हॉल ने 1893 में बाल विकास आंदोलन शुरू किया, इन्होंने चाइल्ड स्टडी सोसाइटी व चाइल्ड वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन की स्थापना की ■ बाल विकास आंदोलन के जनक स्टेनली हॉल को माना जाता है ■ न्यूयॉर्क में 1887 में सबसे पहले बाल सुधार गृह स्थापित किया गया  ★  भारत में बाल विकास के अध्ययन की शुरुआत 1930 ई. से मानी जाती है (ताराबाई मोडक ने की) ■ यूनानी...

मनोविज्ञान का इतिहास

मनोविज्ञान का इतिहास एबिंगहॉस के अनुसार - मनोविज्ञान का अतीत बहुत लंबा है जबकि इतिहास बहुत छोटा है मनोविज्ञान का अतीत 400 ई. पू. से प्रारंभ हो जाता है जबकि इतिहास 1600 वी शताब्दी से प्रारंभ होता है एबिंगहॉस के अनुसार सबसे पहले 5 वी सदी में पैदा हुए दार्शनिक सुकरात ने कहा था मनुष्य को मनुष्य का अध्ययन करना चाहिए  ◆ प्लेटो के शिष्य अरस्तु ने दर्शनशास्त्र में आत्मा के अध्ययन की शुरुआत की और यही आत्मा का अध्ययन आगे चलकर आधुनिक मनोविज्ञान बना इसलिए  अरस्तु को मनोविज्ञान का जनक कहते हैं  Note - कॉलसैनिक एकमात्र विद्वान है जिस का मानना है कि आत्मा की अवधारणा सबसे पहले प्लेटों के द्वारा दी गई, इसलिए मनोविज्ञान का वास्तविक जनक प्लेटो है   ● मनोविज्ञान के जनक अरस्तु को माना जाता है तथा जननी दर्शनशास्त्र को माना जाता है मनोविज्ञान दर्शनशास्त्र की एक शाखा है ◆ 16 वी सदी में 1590 ई.  में यूनानी दार्शनिक रुडोल्फ गोइकले ने  साइकलोजिया पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने आत्मा के अध्ययन के लिए साइकोलॉजी शब्द का प्रयोग किया तब से लेकर आज तक मनोविज्ञान में अंग्रेजी भाषा का PSYCH...

नैतिक विकास का सिद्धांत

  नैतिक विकास का सिद्धांत   प्रतिपादक - लॉरेंस कोहलबर्ग ★ कोहलबर्ग के अनुसार बालकों के नैतिक विकास को समझने से पूर्व बालकों की चिंतन तर्क एवं निर्णय करने की क्षमता को समझना व उसका विश्लेषण करना आवश्यक है क्योंकि उनके नैतिक विकास का आधार तर्क चिंतन और निर्णय क्षमता को ही माना जाता है  ■ कोहलबर्ग ने नैतिक विकास की 6 अवस्थाएं एवं उनके 3   स्तर बताए- 1 प्री कनवेंशनल स्तर - 4 से 10 वर्ष  इस स्तर में बालकों के तर्क चिंतन एवं निर्णय का आधार बाह्य वातावरण में घटित होने वाली घटनाओं को माना जाता है (a) आज्ञा व दंड की अवस्था (b) अहंकार की अवस्था 2 कन्वेंशनल स्तर- 10 से 13 वर्ष इस सफर में बालकों के तरफ चिंतन एवं निर्णय का आधार समाजिक घटनाओं को माना जाता है (C)  उत्तम लड़का लड़की की अवस्था  (d) सामाजिक परंपराओं के मान्यता की अवस्था 3  पोस्ट कन्वेंशनल स्तर- 13 वर्ष से ऊपर इस स्तर में बालक के तरफ चिंतन व निर्णय का आधार उनका स्वयं का विवेक माना जाता है (e) सामाजिक समझौते की अवस्था (F)  उच्चतम विवेक की अवस्था   ■  कोहलबर्ग ने पुनः अप...

भाषाई विकास सिद्धांत

भाषाई विकास सिद्धांत -  प्रतिपादक नॉम चामोस्की   ★ चामोस्की एक भाषाविद थे, इन्हें भाषाई विकास का जनक माना जाता है ■ अपने विचारों का आदान प्रदान करने की प्रक्रिया भाषा कहलाती है    ★ चामोस्की के अनुसार भाषा 2 प्रकार  की होती है  1 प्राथमिक/मातृभाषा - जिस भाषा को बालक बोलना प्रारंभ करता है तथा जिसमें व्याकरण के नियमों की आवश्यकता नहीं होती, उसे मातृभाषा या प्राथमिक भाषा कहते हैं  2 द्वितीयक भाषा- जिस भाषा को सीखने में व्याकरण के नियमों की आवश्यकता हो, उसे द्वितीयक भाषा कहते हैं ★ चामोस्की के अनुसार बालक वातावरण में जिस भाषा को सुनता है व्याकरण की दृष्टि से उसे ही सीख लेता है, बालक को  भाषाई ज्ञान सिखाया नहीं जा सकता, क्योंकि उसमें भाषा सीखने की जन्मजात मूल प्रवृत्ति पाई जाती है जिसे चामोस्की ने LED नाम दिया  ◆भाषा सीखने की प्रक्रिया को जेनरेटिक ग्रामर थ्योरी के नाम से जाना जाता है ★  चामोस्की ने भाषा विकास की दो अवस्थाएं बताई-      1प्रारंभिक अवस्था       2 वास्तविक अवस्था ★ क्रंदन बालक की प्रथ...

जीन पियाजे का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान

जीन पियाजे का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान     जीन पियाजे ने बाल केंद्रित शिक्षा प्रणाली पर बल दिया जीन पियाजे ने स्कीमा के समान समान बुद्धि की तुलना कर एक नवीन आयाम प्रस्तुत किया  जीन पियाजे ने लिखा कि शिक्षकों को बालक  की समस्याओं का तत्काल समाधान कर अधिगम योग्य वातावरण का निर्माण करना चाहिए  जीन पियाजे ने शिक्षा के क्षेत्र में नवीन संप्रत्यय प्रस्तुत किए 1 अनुकूलन - बालकों द्वारा वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने की प्रक्रिया अनुकूलन कहलाती है इस प्रक्रिया में व्यक्ति स्वयं को वातावरण के अनुसार डालने में सफल हो जाता है  जीन पियाजे ने अनुकूलन की दो प्रक्रिया बताई 1आत्मसात करण 2 समायोजन  2 साम्यधारण -   आत्मसातकरण एवं समायोजन के मध्य संतुलन बनाने की प्रक्रिया साम्यधारण कहलाती है  इस प्रक्रिया में पूर्व अनुभव एवं वातावरण के साथ संतुलन का प्रयास किया जाता है 3- संरक्षण - वातावरण में होने वाले परिवर्तन के कारण किसी वस्तु के मूल स्वरूप में होने वाले परिवर्तन को वस्तु के मूल स्वरूप से अलग कर पहचानने की प्रक्रिया सरंक्षण चलाती है 4- संज्...

संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत

संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत    प्रतिपादक - जीन पियाजे ◆जीन पियाजे को संज्ञानात्मक आंदोलन का जनक माना जाता है  ◆जीन पियाजे को विकासात्मक मनोविज्ञान का जनक माना जाता है ● विकास विकासात्मक मनोविज्ञान में गर्भावस्था से वृद्धावस्था के विकास एवं व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है ◆ संज्ञान से आशय बालकों के द्वारा वातावरण से ज्ञान ग्रहण करना, आयु वृद्धि के साथ-साथ वातावरण से ज्ञान ग्रहण करने की प्रक्रिया संज्ञान कहलाती है ◆ जीन पियाजे के अनुसार शैशवावस्था से बालक  अपनी ज्ञानेंद्रियों  द्वारा वातावरण में ज्ञान ग्रहण करता है ★ सोचना,समझना, विचार करना, तर्क करना, चिंतन,       प्रत्यक्षीकरण, अवधान संज्ञान के तत्व कहलाते हैं ■ जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को समझाने के लिए 4 अवस्थाओं को आधार बताया  1 संवेदी पेशीय अवस्था - 0-2 वर्ष ★बाह्य वातावरण की जानकारी का अभाव ★ वस्तु स्थायित्व की भावना का अभाव ★ बालक प्रत्येक वस्तु को देखकर, सुनकर, चखकर या स्पर्श करके ज्ञान ग्रहण करता है ★ बालक ज्ञानेंद्रियों द्वारा वातावरण से ज्ञान ज्ञान ग्रहण करता है 2 पूर्व...