बाल विकास के आयाम
बाल विकास के आयाम
1 गत्यात्मक विकास-
गत्यात्मक विकास और शारीरिक विकास में गहरा संबंध होता है यह एक दूसरे के पूरक होते हैं
गत्यात्मक विकास की प्रक्रिया :
गत्यात्मक विकास की प्रक्रिया :
● एक माह का बालक अपने सिर को ऊपर उठा लेता है
● 4 माह का बालक सारे के साथ बैठ सकता है
● 6 माह का बालक बिना सारे के बैठ सकता है
● 8 माह का बालक घुटनों के बल चलने लगता हैं
● 10 माह का बालक सारे के साथ खड़ा हो सकता है
● 12 माह का बालक बिना सारे के खड़ा हो सकता है
● 18 माह का बालक चलने लगता है
● 24 माह का बालक दौड़ने लगता है
● 36 माह का बालक अपने स्थान से उछलकर किसी भी दिशा में घूम सकता है
● 5 बरस का बालक अपने वजन का आधा वजन उठा सकता है
● 10 बरस का बालक अपने वजन के बराबर वजन उठा सकता है
● 18 बरस का बालक अपने वजन का दोगुना वजन उठा सकता है
2 मानसिक विकास-
मानसिक विकास वह योग्यता है जिसमे व्यक्ति अपनी समस्याओं का समाधान कर वातावरण का शिकार होने से बचता है
■ शैशवावस्था में बालको का सर्वाधिक एंव तीव्र गति से मानसिक विकास होता है
■ पांच वर्ष तक के बालको का 90•/. तक मानसिक विकास पूर्ण हो जाता है
★ गुडएनफ के अनुसार-
बालको का जितना भी मानसिक विकास होता है उसका आधा प्रारंभिक तीन वर्षों में हो जाता है
★ थार्नडाइक के अनुसार-
तीन से छः वर्ष जे बालक प्रायः अर्धस्वपन की अवस्था मे रहते है
मानसिक विकास की प्रक्रिया :
● 1 माह का बालक आवश्यकता पूर्ति के लिए जोर से आवाज करता है
● 2 माह का बालक चमकीली वस्तुओं की ओर आकर्षित होता है
● 3 माह का बालक अपनी माँ को पहचानने लगता है
● 4 माह का बालक अपने नाम को समझने लगता है
● 6 माह का बालक परिचितों को देखकर मुस्कुराता है
● 8 माह का बालक जमीन से अपनी पसंद की वस्तुएं उठाने लगता है
● 10 माह जा बालक अपने पास के वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को समझने लगता है
●12 माह का बालक अनुकरण करने लग जाता है
● 18 माह का बालक अपनी पसंद की वस्तुओं को संकेतों से मांगने लगता है
● 24 माह का बालक नाम बताना, शरीर के अंगों के नाम बताने लग जाता है
● 36 माह का बालक का बालक 4-5 अक्षरो के शब्द बोलने लगता है
● 5 वर्ष के बालक को सिक्को का ज्ञान हो जाता है
● 6 वर्ष के बालक व्याकरण की दृष्टि से शुद्ध उच्चारण करने लग जाते है
● 8 वर्ष के बालक अपने जीवन की सामान्य समस्याओ का समाधान करने लग जाता है
● 9 वर्ष के बालक गणित की सरल प्रक्रिया हल कर लेते है
● 12 वर्ष के बालक का भाषाई विकास पूर्ण हो जाता है
●16 वर्ष के बालक का मानसिक विकास पूर्ण हो जाता है
3 सामाजिक विकास :
◆ समाज द्वारा मान्य व्यवहारों को स्वीकार कर अमान्य व्यवहारों को त्यागने की प्रक्रिया ही सामाजिक विकास कहलाती है
★ अपराधिक कार्यों के अतिरिक्त समाज के आदर्शों की पालना ही सामाजिक विकास कहलाता है
शैशवावस्था में सामाजिक विकास :
● इस अवस्था में सामाजिक गुणों का अभाव पाया जाता है
● इस अवस्था में बालकों को सामाजिक संबंधों का ज्ञान नहीं होता
● इस अवस्था में बालकों में नैतिक गुणों का अभाव पाया जाता है
● इस अवस्था में बालक अनुकरण द्वारा सीखने का प्रयास करता है
● बालकों में सर्वप्रथम सामाजिक गुणों की नींव माँ द्वारा रखी जाती है
● इस अवस्था में बालकों को बाह्य वातावरण का ज्ञान नहीं होता
बाल्यावस्था में सामाजिक विकास:
● सामाजिक विकास की यह एक महत्वपूर्ण अवस्था है
● बालकों में सर्वाधिक सामाजिक गुणों का विकास इसी अवस्था में होता है
● इस अवस्था में बालक शिक्षक के सर्वाधिक नजदीक होता है
● इस अवस्था में बालकों में टोली की भावना का विकास हो जाता है
● बालकों में सामाजिक गुणों का विकास सर्वाधिक खेल के मैदान में होता है तथा इस अवस्था में बालकों की खेल में सर्वाधिक रूचि होती है
● इस अवस्था में बालकों को सामाजिक संबंधों का ज्ञान हो जाता है
किशोरावस्था में सामाजिक विकास:
● इस अवस्था में बालकों में समाजिक कार्यों में सर्वाधिक रुचि पाई जाती है
● देश प्रेम की भावना बढ़ जाती है
● ईश्वर वह धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है
● नेतृत्व क्षमता में प्रतियोगी भावना का विकास हो जाता है
● वीर पूजा की भावना का विकास हो जाता है
● उत्तराधिकार की भावना का विकास हो जाता है
◆ इस अवस्था में बालकों को समायोजन की समस्याओं से गुजरना पड़ता है
4 शारीरिक विकास
मेरीडेथ के अनुसार- गर्भावस्था से वृद्धावस्था तक बालक बालिकाओं की शारीरिक संरचना में होने वाले परिवर्तनों की व्यवस्थित श्रंखला शारीरिक विकास कहलाती है
शारीरिक विकास की अवस्था :
गर्भावस्था में शारीरिक विकास-
1 निषेचन - 14 दिन/ 2 सप्ताह
2 डिंबावस्था -14 दिन से 2 सप्ताह
शरीर का निर्माण शुरू हो जाता है
3 भ्रूण अवस्था- 3 माह से 9 माह का समय
3 माह में लिंग का निर्धारण हो जाता है
तीन माह में भ्रूण के में हृदय की धड़कन प्रारंभ हो जाती है
जन्म के बाद शारीरिक विकास
शैशवावस्था- 0 से 2 वर्ष / 0-5 वर्ष
बाल्यावस्था- 6 से 12 वर्ष
किशोरावस्था- 13 से 19 वर्ष
शैशवावस्था में शारीरिक विकास
◆नवजात की उम्र - 0-14/ 30 दिन अधिकतम
◆नवजात की लंबाई 19-20 इंच/53cm
◆3 माह के बालक की लंबाई- 21 इंच
◆5 वर्ष के बालक की लंबाई 32- 40 इंच/ 101cm
◆नवजात का वजन -3 kg/ 7-8 पाउंड
◆5 वर्ष के बालक का वजन -15-16kg
◆नवजात के हृदय की धड़कन -140/m
◆5 वर्ष के बालक की हृदय की धड़कन- 100/m
◆नवजात की श्वसन क्रिया- 45/m
◆5 वर्ष के बालक की श्वसन क्रिया- 28/m
बाल्यावस्था में शारीरिक विकास
◆बाल्यावस्था के प्रारंभ व अंत मे लंबाई - 108- 136cm
◆बाल्यावस्था के प्रारंभ में अंत में वजन - 15-16/ 27-28 kg
●बाल्यावस्था के प्रारंभ व अंत में हृदय धड़कन-100-85/m
● बाल्यावस्था के प्रारंभ में अंत में श्वसन क्रिया- 28-18/m
◆बाल्यावस्था में सिर का भजन- 950- 1150 ग्राम
◆ बाल्यावस्था में हड्डियों की संख्या- 350 ( सर्वाधिक)
◆ बाल्यावस्था में दांतो की संख्या - 28
किशोरावस्था में शारीरिक विकास
◆किशोरावस्था के प्रारंभ में अंत में लंबाई- 138-165cm
◆किशोरावस्था के प्रारंभ में अंत में भजन- 28-48kg
◆किशोरावस्था में श्वसन क्रिया-14-16/m
◆किशोरावस्था में धड़कन- 72/m
◆किशोरावस्था में हड्डियां- 206
◆किशोरावस्था में मस्तिष्क का वजन -1360gm
◆ शैशवावस्था में लड़कों की लंबाई लड़कियों से अधिक होती है और बाल्यावस्था में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों की लंबाई थोड़ी अधिक होती है तथा किशोरावस्था में पुनः लड़कों की लंबाई अधिक होती है
■ दांतो के विकास की प्रक्रिया गर्भकाल के पांचवे महीने में शुरू हो जाती है जन्म के समय शिशु के दांत नहीं होते सबसे पहले नीचे के 2 दांत निकलते हैं 1 वर्ष तक दांतो की संख्या 8 तथा 4 वर्ष तक दूध के पूरे 20 दांत निकल आते हैं उसके बाद दांतों का गिरना प्रारंभ हो जाता है पांचवें या छठे वर्ष में स्थाई दांत निकलना प्रारंभ हो जाते हैं 12- 13 वर्ष तक दांतो की संख्या 27-28 होती है
5 संवेगात्मक विकास :
■ बालकों की शारीरिक संरचना में तत्काल परिवर्तन कर उन्हें कार्य करने के लिए प्रेरित करने वाली प्रक्रिया संवेग कहलाती है
★संवेग व्यक्ति के जन्म से प्रारंभ होते हैं जो व्यक्ति को गतिशील बनाते हैं
★संवेग तत्काल उत्पन्न होते हैं परंतु शांत धीरे-धीरे होते हैं
◆ संवेग के माध्यम से रचनात्मक के विनाशात्मक परिणाम प्रकट होते हैं
■ संवेग अंग्रेजी के EMOTION का हिंदी रूपांतरण है जिसका शाब्दिक अर्थ - गति प्रदान करने से होता है
परिभाषा :
★ वुडवर्थ के अनुसार - व्यक्ति के आवेग या गति में आने की दशा ही संवेग है
◆ वैलेंटाइन के अनुसार- जब व्यक्ति में रागात्मक तत्वों का वेग बढ़ता है तो संवेग की उत्पत्ति होती है
■ क्रो एंड क्रो के अनुसार -संवेग को व्यक्ति की उत्तेजित दशा के रूप में व्यक्त किया जा सकता है
★ जरशिल्ड के अनुसार - अचानक भड़क उठने या किसी विकार के उत्पन्न होने की प्रक्रिया संवेग कहलाती है
■ बृजेश नामक मनोवैज्ञानिक ने नवजात शिशु में उत्तेजना संवेग बताया
■ वाटसन ने व्यक्ति में तीन प्रकार के संवेग बताएं -
1 भय 2 क्रोध 3 प्रेम
★ संवेगों की विशेषता
● संवेग एक चेतन अनुभूति है
● संवेगों में व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है
● संवेग व्यक्ति की क्रियाशीलता पर प्रभाव डालते हैं
● संवेग उत्पत्ति के दौरान व्यक्ति की मानसिकता कार्य करना कम कर देती है
● तत्काल उत्पन्न होते हैं परंतु शांत धीरे-धीरे होते हैं
● संवेग सुखद वह दुखद होते हैं
● संवेग के रचनात्मक एंव विनाशात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं
● संवेग के आंतरिक व बाह्य परिवर्तन होते हैं
विकासात्मक रोग -
★आटिज्म(autism)- ऑटिज्म एक मस्ती स्वीकार है यह सभी बालकों को अलग-अलग तरीकों से प्रभावित करता है जन्म के कुछ समय पश्चात इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं-
● सामाजिक संपर्क से बचना तथा अकेले रहना
● असामान्य व्यवहार का प्रदर्शन करना
● अपनी भावनाओं को व्यक्त न करना
● कमजोर संप्रेषण
● आमतौर पर देरी से बोलना
● दूसरों की भावनाओं से अनजान रहना
★ वियोग दुश्चिंता विकार(SAD) -इसमें बालक इस डर से कि कहीं माता-पिता उनसे दूर ना हो जाए किसी भी समाज की गतिविधि में भाग नहीं लेता है और ना ही कहीं अकेले जाना चाहता है हमेशा चिंतित रहता है कि कहीं वह अकेला ना रह जाए कहीं माता-पिता उसे छोड़ कर ना चले जाएं
A.D.H.D.- इस विकार में बालक ध्यान केंद्रित करने मैं असमर्थ होता है , ध्यान नहीं रखने के कारण स्मरण में भी बाधा आती है, अपनी किताबों, खिलौनों, पेंसिल आदि को रखकर भूल जाता है बालक बिना सोचे समझे जल्दबाजी में कार्य करता है ,स्वभाव में चिड़चिड़ापन पाया जाता है आक्रामकता का प्रदर्शन करता है तथा बेचैनी से अपने शरीर को हिलाता रहता है
Comments
Post a Comment