भाषा शिक्षण की व्याकरणीय विधियां

 1 अनुकरण विधि - जब एक बालक पहली बार भाषा सीखने की शुरुआत करता है तो वह शिक्षक के कार्यो का अनुकरण करते हुए सीखता है

अनुकरण तीन प्रकार का होता है

1 लेखन अनुकरण - जब एक शिक्षक बालक को लिखना सिखाता है तो उसके लिए वह अपने कार्यों का अनुकरण बालक से करवाता है अनुकरण करते हुए बालक लिखना सीखता है 

■ लेखन अनुकरण भी दो प्रकार का होता है 

(A) रूपरेखा लेखन अनुकरण- जब एक शिक्षक बालक के सामने किसी वर्ण शब्द या अंक की रूपरेखा बनाकर दे देता है और वह बालक उस रूपरेखा के आधार पर वास्तविक वर्ण या शब्द की रचना कर लेता है 

(B) स्वतंत्र लेखन अनुकरण - जब एक शिक्षक के सामने किसी वर्णमाला गिनती शब्दों को एक साथ लिख देता है और कक्षा कक्ष में बैठे हुए बालक स्वतंत्र रूप से उसे देखते हुए लिखने का प्रयास करता है

2 उच्चारण अनुकरण - जब बालक को लिखना आ जाता है तो उसकी अगली आवश्यकता लिखित विषय वस्तु को बोलने या उच्चारित करने की होती है इसके लिए शिक्षक पहले स्वयं उच्चारण करता है और फिर बालक उसके साथ साथ उच्चारण करने लगता है पूर्व प्राथमिक कक्षाओं के लिए प्रत्येक विद्यालय में ऐसी अनिवार्यता होती है कि अंतिम क्लासों में एक बालक बोलता है और बाकी सभी बालक उसका अनुकरण करते हैं 

■ अंग्रेजी भाषा सिखाते समय इसका महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि अंग्रेजी में एक ही वर्ण का उच्चारण अन्य स्थान पर बदल जाता है जैसे - cut में u का उच्चारण अ से और put में u का उच्चारण उ से है 

3 रचना अनुकरण - जब बालक को लिखना पढ़ना आ जाता है तो उसके बाद उन्हें विभिन्न प्रकार की रचनाएं करना सिखाया जाता है इसके लिए शिक्षक कोई एक रचना करके बता देता है उसके आधार पर बालक को कोई अन्य रचना करनी होती है जैसे गाय का निबंध लिखकर उसके आधार पर घोड़े का निबंध लिखवाना 

NOTE-  रचना अनुकरण अपने आप में एक दोष युक्त अनुकरण है क्योंकि इसके उपयोग से बालकों में मौलिक रचना का विकास नहीं हो  सकता 


2 प्रत्यक्ष विधि - प्रत्यक्ष विधि का अर्थ है वस्तुओं को प्रत्यक्ष में दिखाना 

◆ इस विधि का प्रयोग सर्वप्रथम फ्रांस में 1901 में श्री गुइन महोदय द्वारा किया गया

◆ इस विधि में जब एक बालक को किसी अन्य भाषा के शब्दों का ज्ञान करवाया जाता है तो उस समय उस बालक को उस शब्द का मातृभाषा में अर्थ  बताने के स्थान पर उसके सामने संबंधित वस्तु को ही प्रत्यक्ष रूप में रख दिया जाता है

 जैसे एक बालक को फैन शब्द का अर्थ बताना है तो उसके सामने प्रत्यक्ष रूप से पंखा रख दिया जाता है

◆ भारत में इस विधि का उपयोग सबसे पहले मद्रास के प्रोफेसर येट्स के द्वारा 20 वीं सदी में प्रारंभ किया गया

■ इस विधि में तीन मुख्य बातों का ध्यान रखा जाता है -

● इसमें मातृभाषा का प्रयोग वर्जित है

● मौखिक कार्य को प्रधानता दी जानी चाहिए

● वस्तु और शब्द के मध्य सीधा सीधा संबंध स्थापित करके पढ़ाया जाना चाहिए

■ जिस प्रकार बालक श्रवण एंव अनुकरण द्वारा मात्र भाषा सीख लेता है उसी प्रकार व दूसरी भाषा भी सीख लेता है 

प्रत्यक्ष विधि के गुण 

● इसमें भाषाई कौशल बोलना लिखना पढ़ना सीखना के पूरे अवसर विद्यार्थी को प्राप्त होते हैं 

● भाषा के शुद्ध उच्चारण का अभ्यास से अभिव्यक्ति क्षमता का विकास होता है 

● शब्दों के शुद्ध उच्चारण का बार-बार अभ्यास से वाचन में स्पष्टता व धारा प्रवाहिता उत्पन्न होती है

● बालकों को प्रत्यक्ष व स्थाई अनुभव करवाती है 

● मनोवैज्ञानिक विधि है

 प्रत्यक्ष विधि के दोष

 ◆ मातृभाषा का प्रयोग वर्जित होना प्रत्येक दशा हेतु उचित नहीं है 

◆ व्याकरण की अपेक्षा कर देने से व्याकरण के ज्ञान के बिना भाषण व लेखन असंभव है

◆ केवल संज्ञा शब्दों का ही ज्ञान दिया जा सकता है

3 प्रायोजना  विधि - प्रतिपादक किलपैट्रिक

 ◆ इस विधि में बालक स्वयं ही किसी समस्या के प्रोजेक्ट को चुनते हैं इसलिए इसमें रोचकता का सिद्धांत रहता है 

 ◆ बालक जो भी समस्या किसी हल करने के लिए चुनते हैं वह उद्देश्य पूर्ण होती है 

 ◆ स्वभाव से ही क्रियाशील होने के कारण बालको को यह विधि अधिक क्रियाशील बनाए रखती है

 ◆ यह विधि परिस्थितियों के अनुकूल होती है 

 ◆ इस विधि द्वारा बालकों को जो अवसर मिल दिए जाते हैं उनसे उन्हें सामाजिक जीवन के अनुभव होते हैं

 ◆ बालक आरंभ से लेकर अंत तक स्वतंत्र रहता है उसे बाध्य नहीं किया जाता 

परियोजना विधि के चरण

● परिस्थिति उत्पन्न करना 

● कार्य का चुनाव करना 

● कार्यक्रम बनाना 

● कार्यक्रम क्रियान्वित करना 

● कार्य मूल्यांकन करना 

● कार्य का लेखा-जोखा रखना 

■ शिक्षक बालकों की योग्यता व क्षमता ओं के आधार पर ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करें जिनके द्वारा बालक की ने किसी समस्या प्रोजेक्ट को चुन सकें

■ बालक प्रोजेक्ट के रूप में किसी ऐसी समस्या को सुनते हैं जिसमें अधिकांश बालकों की रूचि हो 

■ प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद यह आवश्यक है कि बालक अपने किए गए कार्य का स्वयं निरीक्षण व मूल्यांकन करें (अध्यापक की सहायता से मूल्यांकन करें )

प्रायोजना विधि के गुण

 ★ मनोवैज्ञानिक विधि

 ★ चरित्र निर्माण में सहायक

 ★ तर्क, निर्णय , चिंतन व अन्वेषण शक्ति का विकास 

 ★ स्थायी व स्पष्ट ज्ञान

 ★ अनुशासन गृह कार्य आदि समस्याओं से मुक्ति

  ■ प्रायोजना विधि से छात्र में स्वाध्याय की प्रवृत्ति विकसित होती है 

  ■ बालक में जिज्ञासा रचना की प्रवृत्ति एवं क्रियाशीलता तीव्र रूप से उपस्थित रहती है

 ★ प्रत्यक्ष अनुभव होना ,करके सीखना, अधिगम में सरलता


4 व्याख्यान विधि -

◆ इस विधि में केंद्र बिंदु शिक्षक होता है

◆ यह प्राचीन विधि है

◆ अध्यापक पूर्व में तैयार गई सामग्री को जो कि त्यों कक्षा में प्रस्तुत करता है 

◆इस विधि में अध्यापकों दो कार्य करना पड़ते हैं

1  विषय वस्तु का चयन कर तैयारी करना 

2 कक्षा में भाषण के माध्यम से विषय वस्तु को प्रस्तुत करना 

◆ इस विधि में अध्यापक में अच्छे वक्ता व अच्छे श्रोता के गुण होने चाहिए

 व्याख्यान विधि के गुण 

 ● इस विधि द्वारा ज्ञान तीव्र गति से दिया जा सकता है

 ● अध्यापक के लिए सुविधाजनक विधि है 

 ● अधिक परिश्रम नहीं करना पड़ता 

 ● इस विधि से विद्यार्थियों में स्वर्ण कौशल का विकास होता है 

 ● भारतीय परिवेश के लिए यह विधि अनुकूल है 

व्याख्यान विधि के दोष 

★ इस विधि का प्रयोग केवल उच्च कक्षाओं में ही किया जा सकता है

★  यह विधि बाल केंद्रित नहीं है 

★ बालक एक निष्क्रिय श्रोता के रूप में हो जाता है 

★ रटने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देती है 

★ सभी अध्यापक इस विधि का अनुसरण नहीं कर सकते

5 निरीक्षण विधि- 

■ हिंदी शिक्षण की सबसे महत्वपूर्ण विधि है

■ यह विधि देखकर सीखना नामक सिद्धांत पर आधारित है

■ इस विधि में बालक किसी वस्तु स्थानीय व्यक्ति को देखकर ही उसके बारे में ज्ञान प्राप्त करता है

 निरीक्षण विधि के लाभ

★ इस विधि द्वारा प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है

★ यह विधि क्रियाशीलता के सिद्धांत का पालन करती है 

★ बालक वास्तविक स्थिति से ज्ञान प्राप्त करता है

 निरीक्षण विधि के दोष

◆ सीखने में बहुत समय नष्ट होता है 

◆ अत्यधिक खर्चीली विधि है

◆ छात्रों को बाहरी स्थान पर अनुशासित रखने में कठिनाई आती है

 निरीक्षण विधि की विशेषताएं

● यह मनोवैज्ञानिक विधि है

● छात्रों की ज्ञानेंद्रियों का विकास होता है

● छात्रों के चिंतन शक्ति एवं तर्क शक्ति का विकास होता है

●  छात्र के ज्ञान के भंडार में वृद्धि होती है

● बालकों में विषय के प्रति रुचि और जिज्ञासा उत्पन्न होती है 

निरीक्षण विधि के संदर्भ में आवश्यक सावधानियां- 

★ इस विधि का प्रयोग करते समय परिस्थितियां छात्रों के जीवन से संबंधित होनी चाहिए

★ छात्रों की निरीक्षण की जाने वाली वस्तु स्थान व्यक्ति संबंधित हर जिज्ञासा को शांत किया जाना चाहिए 

★ निरीक्षण के बाद निष्कर्ष सावधानी से निकाले जाएं 

★ निरीक्षण की जाने वाली वस्तु और परिस्थितियों का निरीक्षण करना वे छात्रों के मानसिक स्तर के अनुकूल होनी चाहिए 

★ निरीक्षण के समय शिक्षक छात्रों का उचित ढंग से मार्गदर्शन करें 

★ निरीक्षण को केवल मनोरंजन ने माना जाए

6 व्यतिरेकी विधि - व्यतिरेकी शब्द का शाब्दिक अर्थ तुलना करना 

भाषा शिक्षण में जब एक शिक्षक दो भाषाओं को एक साथ स्पष्ट करने का प्रयास करता है तो वह उन दोनों भाषाओं को तुलनात्मक रूप से सिखाते समय उनकी समानता व असमानता को स्पष्ट करने का प्रयास करता है 

इस विधि में समुचित भाषा के सहारे व्याख्या द्वारा दोनों भाषाओं की ध्वनि,रूप, शब्द,वाक्य व्यवस्था के अंतर को स्पष्ट किया जाता है

व्यतिरेकी विधि के लाभ 

◆ द्वितीय भाषा सीखने के लिए प्रयुक्त होती है 

◆ दो भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन के लिए इसका प्रयोग किया जाता है 

◆ मातृभाषा और सीखे जाने वाली द्वितीय भाषा दोनों का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया जाता है 

◆ उच्च कक्षाओं के लिए उपयोगी है 

व्यतिरेकी विधि के दोष

◆ प्राथमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है 

◆ प्रत्येक बालक इस विधि का लाभ नहीं उठा सकता

◆  समय अधिक लगता है

भोले नाथ तिवारी ने इस विधि को द्वितीय भाषा शिक्षण की सर्वोत्तम विधि कहा है


 7 भाषा संसर्ग विधि - भाषा शिक्षण में जब एक बालक को बिना वर्णमाला का ज्ञान करवाएं शब्दों का ज्ञान दिया जाता है तो कम से कम समय में बालक को पुस्तक पढ़ना सिखा दिया जाता है तो यह भाषा संसर्ग विधि होती है 

■ सर्वप्रथम 1992 ईस्वी में लोक जुंबिश परियोजना के माध्यम से भारत देश में भाषा संसर्ग विधि का प्रचलन शुरू हुआ और वर्तमान में एक बालक को कम से कम समय में पढ़ना लिखना सिखा दिया जाता है 

■ लार्ड मैकाले भाषा संसर्ग विधि के समर्थक माने जाते हैं

भाषा संसर्ग विधि के गुण

● प्राथमिक कक्षाओं में व्याकरण पढ़ाने की यही प्रणाली लाभदायक है 

● व्याकरण के नियमों का ज्ञान कराए बिना भाषा के शुद्ध रूप का अनुकरण करने का अवसर प्रदान कर छात्रों को भाषा के शुद्ध रूप का प्रयोग करना सिखाया जाता है 

● इसके द्वारा प्राथमिक कक्षाओं में रचना तथा अभ्यास द्वारा भाषा का शुद्ध प्रयोग किया जाता है 

● इस विधि में व्याकरण का सैद्धांतिक ज्ञान न दिया जाकर व्यवहारिक ज्ञान पर बल दिया जाता है

●  बालक में शब्द ज्ञान शीघ्रता से पैदा होता है बालक कम समय में पुस्तक पढ़ने लग जाता है

भाषा संसर्ग विधि के दोष -

◆ इस विधि का प्रयोग करने से बालक में वर्णमाला का ज्ञान विकसित नहीं हो पाता

◆  बालक में व्याकरणीय अशुद्धता पैदा हो जाती है

◆ क्रमबद्ध व व्यवस्थित ज्ञान देने में सक्षम नही है


8 समवाय विधि- समवाय से अभिप्राय उस शिक्षा से है जिसमें एक बालक को अपने सामाजिक धार्मिक आर्थिक व्यवसाय एवं औद्योगिक क्षेत्रों को सम्मिलित करते हुए शिक्षा प्रदान की जाए जिससे कि बालक शिक्षा प्राप्ति के बाद उस दिशा में प्रगति कर सके जिसके लिए वह अपने सामाजिक जीवन और समाजिक व्यवहारों को समझते हुए समायोजित या संतुलित जीवन आधार प्राप्त कर सके 

■ सबसे पहले इस प्रकार का विचार 19वीं सदी में फ्रोबेल के द्वारा दिया गया जिन्होंने कहा कि बालक को जीवन केंद्रित शिक्षा दी जानी चाहिए 

■ 20वीं सदी के प्रारंभ में अमेरिकी विद्वान जॉन डीवी ने सांमजसीकरण की शिक्षा का विचार दिया जिसके अनुसार एक बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको सामाजिक वातावरण में संतुलित बनाए रखने से संबंधित हो

◆  उपयुक्त विचारों से प्रभावित होकर थार्नडाइक , स्किनर, गेट्स आदि ने समवाय का विचार दिया जिनके अनुसार तत्कालिक वातावरण को अथवा समसामयिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा की व्यवस्था हो 

■ उपयुक्त विचारों का प्रभाव भारतीय दार्शनिक गांधीजी पर आया और उन्होंने 1937 में बुनियादी शिक्षा की अवधारणा दी और उन्होंने अपने अभिन्न मित्र डॉक्टर जाकिर हुसैन को वर्धा में रहते हुए इस अवधारणा को आगे बढ़ाने के लिए कार्य सौंपा , जहाँ उन्होंने 1937 से 1940 के बीच कार्य करते हुए इस अवधारणा को भारतीय शिक्षा में समाहित किया

समवाय विधि के गुण

◆  छात्र को मिले-जुले पाठ्यपुस्तक का ज्ञान कराना

◆  जीवन केंद्रित शिक्षा का ज्ञान कराना 

◆  सामंजस्यीकरण पर बल

◆  बुनियादी शिक्षा पर बल

समवाय विधि के दोष 

● व्याकरण के नियमों का तार्किक एवं व्यवस्थित ज्ञान नहीं दिया जा सकता 

● मूल पाठ से भटक जाने का भय बना रहता है


9 प्रश्नोत्तर विधि  - शिक्षण की इस विधि में संपूर्ण पाठ का विकास छोटे-छोटे प्रश्नों से किया जाता है 

◆ इस विधि में शिक्षक पाठ के प्रत्येक गद्य या पंक्ति पर वस्तुनिष्ठ अथवा अति लघु प्रश्नों की रचना करता है 

◆ शिक्षक छात्रों से प्रश्न पूछ कर अपने पाठ का विकास करता है 

◆ छात्र शिक्षक द्वारा तैयार किए गए प्रश्नों के उत्तर देते हुए आगे बढ़ता है 

◆ यह विधि भाषा अध्ययन के क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है

◆  इस विधि के जन्मदाता सुकरात माने जाते हैं

 ◆ शिक्षक इस प्रकार से प्रश्न पूछता है कि छात्रों में रुचि और जिज्ञासा बनी रहे 

 प्रश्नोत्तर विधि के गुण 

◆ बालक में विश्वास की भावना जागृत होती है और संकोच की प्रवृत्ति भी समाप्त होती है

◆ बालक में जिज्ञासा बनी रहती है इस विधि में शिक्षक बालकों का मूल्यांकन भी साथ-साथ करता जाता है

◆ बालक में सोचने समझने तर्क करने की क्षमता का विकास होता है

◆  पाठ्यक्रम को नियत समय में आसानी से पूरा किया जा सकता है 

प्रश्नोत्तर विधि के दोष 

● विद्यार्थी को प्रश्न पूछने की शंका नहीं रहने के कारण वह कभी-कभी विषय से अलग प्रश्न पूछ लेता है

 ◆ यह उच्च स्तर पर ही उपयोगी है  

 ◆ कभी-कभी छात्रों द्वारा अत्यधिक एक साथ प्रश्न पूछने पर बाहर से देखने वाले को शिक्षण कार्य ठीक चलता प्रतीत नहीं होता

 10 आगमन विधि जब एक शिक्षक उदाहरण के सहयोग से किसी नियम तक पहुंचता है तो वह सकारात्मक  सूत्रों का प्रयोग लेता है,  इसे ही आगमन उपागम कहते हैं

◆ इस उपागम में ज्ञात से अज्ञात की ओर, विशिष्ट से सामान्य की ओर, स्थूल से सूक्ष्म की ओर, विश्लेषण से संश्लेषण की ओर सूत्रों का उपयोग किया जाता है

आगमन विधि के चरण 

◆ उदाहरण प्रस्तुतीकरण

◆ निरीक्षण/ तुलना 

◆ सामान्यीकरण

● सत्यापन

 आगमन विधि के गुण

● यह मनोवैज्ञानिक विधि है

● इस विधि से प्राप्त ज्ञान स्थाई होता है

● यह विधि तर्क व चिंतन का विकास करती है

● समस्या समाधान के गुणों का विकास करती है

● प्रारंभिक कक्षाओं के बालकों के लिए विशेष रूचिकर विधि है

● इस विधि में शिक्षक व छात्र दोनों क्रियाशील रहते हैं

● यह विधि बालकों में खोजी प्रवृत्ति का विकास करती है

आगमन विधि के दोष

● समय अधिक खर्च होता है

● पाठ्यक्रम समय पर पूरा नहीं हो पाता है

● प्रतिभाशाली बालकों में उस कक्षा के बालकों में नीरसता पैदा करती है

● अध्यापक को उदाहरण देने की कला में प्रवीण होना अत्यावश्यक है

● किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए काफी उदाहरण देने पड़ते हैं

● नियमों में पूर्ण सत्यता नहीं होती

11 निगमन विधि - जब एक शिक्षक शिक्षण कार्य करते समय पहले से स्थापित किसी नियम व सूत्र का उपयोग करते हुए किसी उदाहरण को कम समय में स्पष्ट कर देता है तो वह निगमन उपागम होता है 

◆ निगमन के समय नकारात्मक सूत्र प्रभावी रहते हैं 

◆ इस विधि में पहले नियम रखा जाता है फिर उदाहरणों से उसकी पुष्टि की जाती है

 ◆ इस विधि में छात्रों को नियम बता दिए जाते हैं तथा वे उन्हें रट लेते हैं

निगमन विधि के चरण -

1 नियम या सिद्धांत का ज्ञान 

2 नियम या सिद्धांत का प्रयोग 

3 आंकड़ों के आधार पर परीक्षण 

4 सत्यापन

निगमन विधि के गुण

● पाठ्यक्रम समय पर पूर्ण होता है

●  नियमों से व्याकरणीय ज्ञान शीघ्रता से प्राप्त हो जाता है

● समस्या समाधान में समय कम खर्च होता है

● प्रतिभाशाली बालकों की रूचि कर भी दी है

● यह विधि संक्षिप्त होने के साथ व्यवहारिक विधि है

● सामान्य शिक्षक भी इस विधि में शिक्षण सफलतापूर्वक करता है

● इस विधि का प्रयोग करने से क्रमबद्ध ज्ञान प्राप्त होता है

निगमन विधि के दोष

● छोटे स्तर के बालकों के लिए यह विधि अनुपयुक्त है

● अमनोवैज्ञानिक विधि है

● यह विधि रटने की प्रवृत्ति पर बल देती है

◆ इस विधि से प्राप्त ज्ञान अस्थाई होता है

◆ इस विधि के प्रयोग से बालक में आत्मनिर्भरता व  आत्मविश्वास उत्पन्न नहीं होता 

◆ यह बालकों के तर्क, विचार एवं निर्णय करने की शक्ति के विकास में सहायक नहीं है

12 आगमन-निगमन विधि - 

◆ शिक्षक व्याकरण पढ़ाते समय आगमन और निगमन दोनों विधियों को एक साथ प्रयोग करता है तो वह आगमन-निगमन विधि कहलाती है 

◆ इस विधि में शिक्षक पहले उदाहरण प्रस्तुत करता है और फिर छात्रों से नियम बनवाता है 

◆ शिक्षक नियम को सिद्ध करने हेतु अनेक उदाहरण भी प्रस्तुत करता है

13 श्रुतिलेखन विधि - भाषा शिक्षण में जब एक शिक्षक सभी बालकों को शुद्ध शब्द लेखन सिखाने का प्रयास करता है तो इसके लिए वह पाठ के किसी हिस्से से 20 कठिन शब्दों का चुनाव करता है तथा स्वयं उन शब्दों को शुद्ध रूप में उच्चारण करता है एंव बालक सुनने के आधार पर शुद्ध रूप में लिखने का प्रयास करते हैं उसके बाद शिक्षक स्वयं प्रत्येक बालक की उत्तर पुस्तिका की जांच करता है और गलत पाए गए शब्दों के गोला लगाते हुए उन्हें खुद शुद्ध रूप से लिखता है और फिर बालक को 10-10 बार शुद्ध लिखने के लिए प्रेरित करता है ऐसा करने से बालक में शुद्ध शब्द लेखन का विकास होता है 

गुण 

● मनोवैज्ञानिक विधि है 

● भाषा शुद्धता का विकास होता है

● बालक में समन्वय एवं लेखन कौशल में वृद्धि होती है

 दोष -

● समय अधिक लगता है

● योग्य शिक्षकों का अभाव पाया जाता है


14 व्याकरण अनुवाद विधि  - यह विधि अन्य भाषा सिखाते समय एक शिक्षक के द्वारा उपयोग में ली जाती है 

◆ इसमें सबसे पहले  शिक्षक अन्य भाषा की विषय वस्तु को बालक की मातृभाषा में अनुवादित करता है और अनुवाद करते समय अन्य भाषा के व्याकरण का ध्यान रखता है

◆ सबसे पहले भारतीय परिवेश में इस विधि का प्रयोग दक्षिण भारतीय शिक्षा शास्त्री श्री राम किशन गोपाल भंडारकर ने संस्कृत भाषा को सिखाते हुए किया था इसलिए इन्हीं के नाम पर इस विधि को भंडारकर विधि भी कहते हैं

◆  भारत देश में इस विधि के द्वारा फ्रेंच,जर्मन, फारसी, उर्दू,  अंग्रेजी, लेटिन, संस्कृत भाषाओं को सिखने में प्रयोग में ली जाती है


15 वाचन विधि - वाचन से अभिप्राय अर्थ ग्रहण करते हुए पढ़ना होता है 

● जब एक व्यक्ति या विद्यार्थी किसी लिखित सामग्री को ध्यान पूर्वक पड़ता है और पढ़ते हुए उसका अर्थ भी ग्रहण करता है तो वह वाचन कहलाता है 

◆ कक्षा कक्ष में एक शिक्षक सबसे पहले वाचन करता है और फिर उसके बाद बालक अपने स्तर पर वाचन करते हुए अर्थग्रहण का प्रयास करता है

 ◆ डॉ धारनाथ चतुर्वेदी के अनुसार वाचन व्यक्ति का मित्र होता है इससे वह लंबी यात्रा के समय अथवा बीमारी के समय जब अकेले में होता है तो अपना समय गुजरता है 

वाचन विधि के गुण  -

◆ विषय वस्तु को स्मरण करने में मदद करती है 

◆ बालक में स्वाध्याय के गुणों का विकास करती है

◆  बालक में अभ्यास से अर्थ ग्रहण की क्षमताएं बढ़ती है

 दोष 

● समय अधिक खर्च होता है

● पूर्व प्राथमिक कक्षाओं के लिए उपयोगी नहीं है

Note - एक बालक में सही प्रकार से वाचन की शुरुआत उच्च प्राथमिक कक्षाओं में होती है , विशेषकर मौन वाचन कक्षा 6 से शुरू होता है कुछ प्रतिभाशाली बालक ऐसे होते हैं जिनमें इसकी शुरुआत कक्षा 3 से हो जाती है


16 सैनिक विधि -  द्वितीय विश्व युद्ध के समय जब अमेरीका में सैनिकों की कमी हो गई तो उस समय अमेरिकी सरकार ने कई सैनिकों को सेना में भर्ती कर लिया जो कि अनपढ़ थे बाद में अमरीका के सैनिक अधिकारियों ने पेज ब्लूमफील्ड आदि विद्वानों के विचारों के द्वारा एक विशेष प्रकार का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जिससे आर्मी स्पेशल ट्रेनिंग प्रोग्राम (ASTP) नाम दिया गया और 15 से 20 सैनिकों वाले छोटे-छोटे ग्रुप बनाए गए और उन्हें मौखिक रूप से भाषा को पढ़ना सिखा दिया गया इस प्रकार से आज भी भाषा शिक्षण में दुनिया के किसी भी देश में जब मौखिक रूप से भाषा का ज्ञान दिया जाता है तो वह सैनिक विधि के नाम से जानी जाती है





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