निर्मित वाद सिद्धांत

निर्मित वाद सिद्धांत- प्रवर्तक - जेरोम ब्रूनर 
■निर्मित वाद की उत्पत्ति जीन पियाजे के संज्ञानात्मक क्षेत्र से मानी जाती है 
■ निर्मितवाद से आशय बालक के लिए ऐसे अधिगम योग्य वातावरण का निर्माण करना जिसमें बालक अपनी विषयवस्तु सरलतापूर्वक सीख सके

■ब्रूनर के अनुसार निर्मित वाद में बालकों को किसी भी प्रकार की विषय वस्तु का शिक्षण करवाने से पूर्व विषय वस्तु के नियम, प्रकृति, उद्देश्य एवं उसके सिद्धांतों की सामान्य जानकारी बालकों को पूर्व में ही प्रदान कर देनी चाहिए ऐसा करने पर-
1 सीखना सरल हो जाता है 
2 रुचि उत्पन्न हो जाती है 
3 स्थाई ज्ञान की प्राप्ति होती है 
4 ज्ञान का स्थानांतरण संभव

निर्मित वाद की विशेषताएं- 
1 छात्र केंद्रित प्रक्रिया है
2 बालक अपने पूर्व अनुभव से ज्ञान ग्रहण करता है
3 बालक स्वयं ज्ञान का सृजन करता है
4 छात्रों की सक्रियता व तत्परता पर बल
5 बालको मैं आपसी सहयोग व साझेदारी की भावना जागृत करता है
6 बालकों के समक्ष चुनौतीपूर्ण परिस्थितियां उत्पन्न कर अधिगम करवाया जाता है
7 बालकों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है

निर्मित वाद की अवस्थाएं-
1- विधि निर्माण अवस्था-  0-2 वर्ष
■ बालक संवेदना द्वारा ज्ञान अर्जित करता है 
■बालक को बाह्य वातावरण का ज्ञान नहीं होता

2 प्रतिमा निर्माण अवस्था-  3-12 वर्ष
 ★ मूर्त चिंतन प्रारंभ होता है
 ★ प्रत्यक्ष वस्तु को देखकर वातावरण से ज्ञान ग्रहण करता है

3 चिह्न निर्माण अवस्था-  12 वर्ष के बाद 
 ★ संकेतों के माध्यम से ज्ञान ग्रहण करता है

निर्मित वाद के प्रकार
1संज्ञानात्मक निर्मितवादप्रतिपादक- जीन पियाजे 
★बालकों के ज्ञान का आधार बाह्य वातावरण की घटनाओं को माना जाता है

2 सामाजिक निर्मितवाद - प्रतिपादक - वाइगोत्सकी 
★ इसमे बालक वातावरण में घटित समाजिक घटनाओं से ज्ञान ग्रहण किया जाता है

3त्रिज्यीय निर्मितवाद -प्रतिपादक जेरोम ब्रूनर
  ■ इसमे ज्ञान ग्रहण करने का आधार बालक का स्वयं  का विवेक माना जाता है

Comments

Popular posts from this blog

संविधान निर्माण में भारतीय प्रयास

भाषा शिक्षण की व्याकरणीय विधियां