हिंदी शिक्षण विधियां- अनुकरण विधि, प्रत्यक्ष विधि, प्रायोजना विधि

1 अनुकरण विधि - जब एक बालक पहली बार भाषा सीखने की शुरुआत करता है तो वह शिक्षक के कार्यो का अनुकरण करते हुए सीखता है

अनुकरण तीन प्रकार का होता है

1 लेखन अनुकरण - जब एक शिक्षक बालक को लिखना सिखाता है तो उसके लिए वह अपने कार्यों का अनुकरण बालक से करवाता है अनुकरण करते हुए बालक लिखना सीखता है 

■ लेखन अनुकरण भी दो प्रकार का होता है 

(A) रूपरेखा लेखन अनुकरण- जब एक शिक्षक बालक के सामने किसी वर्ण शब्द या अंक की रूपरेखा बनाकर दे देता है और वह बालक उस रूपरेखा के आधार पर वास्तविक वर्ण या शब्द की रचना कर लेता है 

(B) स्वतंत्र लेखन अनुकरण - जब एक शिक्षक के सामने किसी वर्णमाला गिनती शब्दों को एक साथ लिख देता है और कक्षा कक्ष में बैठे हुए बालक स्वतंत्र रूप से उसे देखते हुए लिखने का प्रयास करता है

2 उच्चारण अनुकरण - जब बालक को लिखना आ जाता है तो उसकी अगली आवश्यकता लिखित विषय वस्तु को बोलने या उच्चारित करने की होती है इसके लिए शिक्षक पहले स्वयं उच्चारण करता है और फिर बालक उसके साथ साथ उच्चारण करने लगता है पूर्व प्राथमिक कक्षाओं के लिए प्रत्येक विद्यालय में ऐसी अनिवार्यता होती है कि अंतिम क्लासों में एक बालक बोलता है और बाकी सभी बालक उसका अनुकरण करते हैं 

■ अंग्रेजी भाषा सिखाते समय इसका महत्व और भी बढ़ जाता है क्योंकि अंग्रेजी में एक ही वर्ण का उच्चारण अन्य स्थान पर बदल जाता है जैसे - cut में u का उच्चारण अ से और put में u का उच्चारण उ से है 

3 रचना अनुकरण - जब बालक को लिखना पढ़ना आ जाता है तो उसके बाद उन्हें विभिन्न प्रकार की रचनाएं करना सिखाया जाता है इसके लिए शिक्षक कोई एक रचना करके बता देता है उसके आधार पर बालक को कोई अन्य रचना करनी होती है जैसे गाय का निबंध लिखकर उसके आधार पर घोड़े का निबंध लिखवाना 

NOTE-  रचना अनुकरण अपने आप में एक दोष युक्त अनुकरण है क्योंकि इसके उपयोग से बालकों में मौलिक रचना का विकास नहीं हो  सकता 


2 प्रत्यक्ष विधि - प्रत्यक्ष विधि का अर्थ है वस्तुओं को प्रत्यक्ष में दिखाना 

◆ इस विधि का प्रयोग सर्वप्रथम फ्रांस में 1901 में श्री गुइन महोदय द्वारा किया गया

◆ इस विधि में जब एक बालक को किसी अन्य भाषा के शब्दों का ज्ञान करवाया जाता है तो उस समय उस बालक को उस शब्द का मातृभाषा में अर्थ  बताने के स्थान पर उसके सामने संबंधित वस्तु को ही प्रत्यक्ष रूप में रख दिया जाता है

 जैसे एक बालक को फैन शब्द का अर्थ बताना है तो उसके सामने प्रत्यक्ष रूप से पंखा रख दिया जाता है

◆ भारत में इस विधि का उपयोग सबसे पहले मद्रास के प्रोफेसर येट्स के द्वारा 20 वीं सदी में प्रारंभ किया गया

■ इस विधि में तीन मुख्य बातों का ध्यान रखा जाता है -

● इसमें मातृभाषा का प्रयोग वर्जित है

● मौखिक कार्य को प्रधानता दी जानी चाहिए

● वस्तु और शब्द के मध्य सीधा सीधा संबंध स्थापित करके पढ़ाया जाना चाहिए

■ जिस प्रकार बालक श्रवण एंव अनुकरण द्वारा मात्र भाषा सीख लेता है उसी प्रकार व दूसरी भाषा भी सीख लेता है 

प्रत्यक्ष विधि के गुण 

● इसमें भाषाई कौशल बोलना लिखना पढ़ना सीखना के पूरे अवसर विद्यार्थी को प्राप्त होते हैं 

● भाषा के शुद्ध उच्चारण का अभ्यास से अभिव्यक्ति क्षमता का विकास होता है 

● शब्दों के शुद्ध उच्चारण का बार-बार अभ्यास से वाचन में स्पष्टता व धारा प्रवाहिता उत्पन्न होती है

● बालकों को प्रत्यक्ष व स्थाई अनुभव करवाती है 

● मनोवैज्ञानिक विधि है

 प्रत्यक्ष विधि के दोष

 ◆ मातृभाषा का प्रयोग वर्जित होना प्रत्येक दशा हेतु उचित नहीं है 

◆ व्याकरण की अपेक्षा कर देने से व्याकरण के ज्ञान के बिना भाषण व लेखन असंभव है

◆ केवल संज्ञा शब्दों का ही ज्ञान दिया जा सकता है

3 प्रायोजना  विधि - प्रतिपादक किलपैट्रिक

 ◆ इस विधि में बालक स्वयं ही किसी समस्या के प्रोजेक्ट को चुनते हैं इसलिए इसमें रोचकता का सिद्धांत रहता है 

 ◆ बालक जो भी समस्या किसी हल करने के लिए चुनते हैं वह उद्देश्य पूर्ण होती है 

 ◆ स्वभाव से ही क्रियाशील होने के कारण बालको को यह विधि अधिक क्रियाशील बनाए रखती है

 ◆ यह विधि परिस्थितियों के अनुकूल होती है 

 ◆ इस विधि द्वारा बालकों को जो अवसर मिल दिए जाते हैं उनसे उन्हें सामाजिक जीवन के अनुभव होते हैं

 ◆ बालक आरंभ से लेकर अंत तक स्वतंत्र रहता है उसे बाध्य नहीं किया जाता 

परियोजना विधि के चरण

● परिस्थिति उत्पन्न करना 

● कार्य का चुनाव करना 

● कार्यक्रम बनाना 

● कार्यक्रम क्रियान्वित करना 

● कार्य मूल्यांकन करना 

● कार्य का लेखा-जोखा रखना 

■ शिक्षक बालकों की योग्यता व क्षमता ओं के आधार पर ऐसी परिस्थितियों का निर्माण करें जिनके द्वारा बालक की ने किसी समस्या प्रोजेक्ट को चुन सकें

■ बालक प्रोजेक्ट के रूप में किसी ऐसी समस्या को सुनते हैं जिसमें अधिकांश बालकों की रूचि हो 

■ प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद यह आवश्यक है कि बालक अपने किए गए कार्य का स्वयं निरीक्षण व मूल्यांकन करें (अध्यापक की सहायता से मूल्यांकन करें )

प्रायोजना विधि के गुण

 ★ मनोवैज्ञानिक विधि

 ★ चरित्र निर्माण में सहायक

 ★ तर्क, निर्णय , चिंतन व अन्वेषण शक्ति का विकास 

 ★ स्थायी व स्पष्ट ज्ञान

 ★ अनुशासन गृह कार्य आदि समस्याओं से मुक्ति

  ■ प्रायोजना विधि से छात्र में स्वाध्याय की प्रवृत्ति विकसित होती है 

  ■ बालक में जिज्ञासा रचना की प्रवृत्ति एवं क्रियाशीलता तीव्र रूप से उपस्थित रहती है

 ★ प्रत्यक्ष अनुभव होना ,करके सीखना, अधिगम में सरलता

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