Cce
CCE - सतत एवं व्यापक मूल्यांकन स्कूल पर आधारित एक प्रणाली है जो बालकों के सर्वांगीण विकास पर अध्ययन करती है
सततता - मूल्यांकन सतत रूप से चलता है जो की निरंतरता को प्रदर्शित करती है, मूल्यांकन की सततता से अभिप्राय अभिवृद्धि तथा विकास की सतत प्रक्रिया को संपूर्ण सत्र में निर्धारित करने से होता है इसमें शैक्षिक क्षेत्र शामिल होता है शैक्षिक क्षेत्र - अधिगम, पाठ्यक्रम,शिक्षण, पाठ्यचर्या
व्यापकता - शैक्षिक क्रियाओं के साथ-साथ सह- शैक्षिक क्रियाओं को भी मूल्यांकन के दायरे में लेना उसेेे व्यापकता प्रदान करता है, इसमें सभी पहलुओं पर अध्ययन किया जाता है शैक्षिक एवं सह- शैक्षिक दोनों क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है सह- शैक्षिक क्षेत्र - खेल,संगीत, नृत्य, जीवन कौशल
■ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में मूल्यांकन को सतत और व्यापक बनाने पर बल दिया गया
■ ncf-2005 के निर्देशक तत्वों में परीक्षा को कक्षा की गतिविधियों से जोड़ने पर बल दिया गया
◆ RTE 2009 की धारा 29(2) में CCE को लागू करने के निर्देश दिए गए
■ भारत में 2009 में CBSE/NCERT विद्यालयों में कक्षा 9 से CCE लागू किया गया
★ राजस्थान में शिक्षा में गुणवत्ता , नवाचार तथा सीखने में सुदृढ़ीकरण SIQE लागू किया गया
● SIQE - स्टेट इनीशिएटिव फॉर क्वालिटी एजुकेशन
■ SIQE प्रोजेक्ट कक्षा 1 से 5 तक लागू है जिसमें -
1 CCE - continous and comprehensive evalution
2 CCP - child centre pedigogy
3 ABL - Activity based learnin
■ संपूर्ण देश में CCE प्रणाली को एक अप्रैल 2010 से लागू किया गया
★ CBSE में कक्षा 1 से कक्षा 10 तक CCE प्रणाली लागू है
■ राजस्थान में CCE निम्न चरणों में लागू हुआ
● प्रथम चरण - 2010-11 (पायलट प्रोजेक्ट के तहत राजस्थान के अलवर में जयपुर जिले में 60 विद्यालयों में लागू)
● द्वितीय चरण - 2012 -13
● तृतीय चरण - 2013-14
● अंतिम चरण - 2015-16
■ सत्र 2015-16 में कक्षा 1 से 5 तक संपूर्ण राजस्थान में लागू
■ CCE की प्रणाली के लिए राजस्थान में उदयपुर में प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गई है
■ CCE में ग्रेडिंग का आधार-
★ A ग्रेड - अपेक्षित समझ का शतक
★ B ग्रेड - अपेक्षित समझ में शिक्षक की भूमिका
★ C ग्रेड - शिक्षक की विशेष भूमिका
CBSE स्कूल में ग्रेडिंग आधार -
A1 - 91 - 100
A2 - 81 - 90
B1 - 71 - 80
B2 - 61 - 70
C1 - 51 - 60
C2 - 41 - 50
D - 33 - 40
E1 - 21 - 32
E2 - 20 से कम
CCE का पैटर्न - शैक्षणिक वर्ष में मूल्यांकन
रचनात्मक मूल्यांकन = FA -1,2,3,4
योगात्मक मूल्यांकन = SA - 1,2
FA-1 = 10 •/•
FA-2 = 10 •/•
SA-1 = 30 •/•
(मार्च से अक्टूबर तक)
FA-3 = 10 •/•
FA-4 = 10 •/•
SA-2 = 30 •/•
(अक्टूबर से मार्च तक)
CCE की शब्दावली
1 BLA - (base line assessment )-cce प्रक्रिया में सत्र आरंभ में ही कक्षा के बालकों का एक आकलन किया जाता है जिसके द्वारा उनके बौद्धिक सत्र का निर्धारण किया जाता है तथा उनका उद्देश्य यह होता है कि बौद्धिक स्तरों के आधार पर कक्षा के प्रतिभाशाली व कमजोर बालकों की पहचान करके उनकी शैक्षिक क्रियाओं के स्वरूप का निर्धारण किया जा सके क्योंकि प्रतिभाशाली बालकों को उनके स्तर के तथा कमजोर बालकों को उनके स्तर से पढ़ाने पर अधिगम प्रक्रिया सरल हो जाती है यह वास्तव में सीखने के लिए आकलन है
2 पोर्टफोलियो - यह दस्तावेजों के संग्रह की एक ऐसी फाइल होती है जिसमें बालक द्वारा किए गए समस्त कार्यों का विवरण होता है बालकों की शैक्षिक प्रगति को दर्शाने वाले समस्त कार्यपत्रक अध्यापक रिपोर्ट , अवलोकन रिपोर्ट, शैक्षिक के साथ-साथ सह शैक्षिक गतिविधियों में उनकी उपलब्धि के विवरण आदि की समस्त प्रकार की सूचनाओं का संग्रह पोर्टफोलियो में होता है
3 चेक लिस्ट - इसके अंतर्गत बालकों के किए गए कार्य पर ग्रेड अंकित होते हैं तथा इन ग्रेड के आधार पर उनकी उपलब्धियों का अनुमान लगाया जाता है
4 पदस्थापना आकलन - संपूर्ण सत्र में शैक्षिक क्रियाएं कर लेने के पश्चात बालकों को सत्र के अंत में दिए गए उपलब्धियों के ग्रेड व दक्षता के स्तर को अगली कक्षा प्रारंभ करते समय निर्धारित प्रपत्र पर उल्लेखित करना पदस्थापना आंकलन होता है
उपलब्धि परीक्षण - उपलब्धि परीक्षण वे परीक्षाये होती है जिनकी सहायता से विद्यालय में पढ़ाए जाने वाले विषयों और लिखाये जाने वाली कुशलताओं में छात्रों की सफलता या उपलब्धि का ज्ञान प्राप्त किया जाता है
◆ इस उपलब्धि परीक्षण में विद्यार्थी को सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक ज्ञान की उपलब्धि के लिए प्रयोग में लिया जाता है इसे उपलब्धि परीक्षण करते हैं
■ वार्षिक परीक्षा के रूप में शिक्षक विद्यार्थियों के द्वारा सीखी हुई उपलब्धियों को जानने के लिए जो परीक्षा में लेता है उपलब्धि परीक्षण कहलाता है
फ्रीमैन के अनुसार - उपलब्धि परीक्षण वह अभिकल्प है जो पाठ्यक्रम के किसी एक विषय अथवा सभी विषयों के बारे में छात्र के ज्ञान समझ व कौशल का मापन करता है
◆ डग्लस व हॉलैंड ने उपलब्धि परीक्षण के दो प्रकार बताएं
1 मानक परक/ प्रमापीकृत परीक्षण - इसका निर्माण मनोवैज्ञानिकों द्वारा किया जाता है तथा इसकी वैधता व विश्वसनीयता सुनिश्चित होती है
2 प्रमापीकृत परीक्षण - इसका निर्माण शिक्षक अपनी आवश्यकता के अनुसार करता है
उपलब्धि परीक्षण के सोपान
1 शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण
2 अभिकल्प का निर्माण
3 रूपरेखा का निर्माण
4 अपेक्षित प्रश्न लिखना
5 अंकन तैयार करना
6 प्रश्नों का विश्लेषण करना
निदानात्मक परीक्षण - निदानात्मक परीक्षण सामान्य उपलब्धि परीक्षण इस बात का पता करने में सक्षम होते हैं कि कक्षा के विभिन्न बौद्धिक स्तरो के बालक कौन-कौन है अथार्थ वे कक्षा के प्रतिभाशाली औसत तथा कमजोर छात्रों का विभेदीकरण आसानी से कर लेते हैं किंतु पिछले बालकों की विषयगत दुर्बलता की प्रकृति क्या है दुर्बलता के कारण क्या है इस बात का पता केवल निदानात्मक परीक्षण से चलता है
◆ अतः ऐसे परीक्षण जो बालकों की अधिगम संबंधी कठिनाइयों की प्रकृति एवं कारणों को जानने के लिए किए जाते हैं उन्ही परीक्षणों को नैदानिक परीक्षण कहा जाता है तथा इनके आधार पर शैक्षिक दुर्बलता के कारणों का विश्लेषण करके उपचारात्मक शिक्षण की योजना बनाई जाती है
★ निदानात्मक परीक्षण का स्वरूप
1 बालक किस प्रकार बालक किस प्रकार की त्रुटि करता है
2 उसकी त्रुटि की स्थिति क्या है
3 त्रुटि का वास्तविक कारण क्या है
4 त्रुटि का विस्तार क्या है
5 अन्य त्रुटियों से इस त्रुटि का संबंध क्या है
6 त्रुटि का उपचार व्यक्तिगत संभव है या सामूहिक संभव है
निदानात्मक परीक्षण की विशेषता
◆ निदानात्मक परीक्षण में वैधता विश्वसनीय तथा वस्तुनिष्ठता के गुण होते हैं
◆ इन्हें सीखने के लिए आकलन कहा जाता है
◆ निदानात्मक परीक्षण ही उपचारात्मक शिक्षण का आधार होते हैं
◆ इनसे शैक्षिक दुर्बलता दुर्बलता की वास्तविक कारणों का पता चलता है
उपचारात्मक शिक्षण -इसे विशेष शिक्षण योजना भी कहा जाता है तथा यह सामान्य शिक्षण योजना से भिन्न होती है, निदानात्मक परीक्षण से केवल यह ज्ञात होता है कि विद्यार्थी को किस किस बिंदु मैं क्या-क्या समस्या है लेकिन इन समस्या के समाधान के लिए हमें उपचारात्मक शिक्षण करना होता है
● ऐसे छात्र जिनका निदानात्मक परीक्षण के पश्चात असामान्य होने का पता चलता है उन्हीं के लिए उपचारात्मक शिक्षण योजना बनाई जाती है
● इसमें ज्ञात की गई त्रुटियों, उनकी प्रकृति और उनके कारणों का विश्लेषण करके शिक्षण की योजना बनाई जाती है
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