Psychology unit 5
शिक्षण द्विमुखी प्रक्रिया- एडम्स महोदय ने शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया माना है जिसके दो ध्रुव निम्न है
1 शिक्षक
2 शिक्षार्थी
शिक्षण त्रिमुखी प्रक्रिया- जॉन डीवी के अनुसार शिक्षण त्रिमुखी प्रक्रिया है
शिक्षक व शिक्षार्थी के मध्य अंतः क्रिया होती है जो पाठ्यक्रम पर आधारित होती है अतः शिक्षण प्रक्रिया के तीन महत्वपूर्ण अंग निम्न है-
1 शिक्षक
2 शिक्षार्थी
3 पाठ्यक्रम
शिक्षक - शिक्षण प्रदान करने की महत्वपूर्ण धुरी
■ फ्रोबेल ने अपनी शिक्षा प्रणाली में शिक्षक को बालोद्यान का कुशल माली कहा है
■ रविंद्र नाथ टैगोर के अनुसार - एक अच्छा शिक्षक तभी अच्छा अध्यापन करवा सकता है जब वह स्वयं अध्ययनरत रहता हो, एक जलता हुआ दीपक की दूसरे दीपक को प्रज्वलित कर सकता है
कॉलसैनिक के अनुसार - शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक विशेष को यह निर्णय करने में सहायता दे सकता है कि वह विशिष्ट परिस्थितियों में अपनी विशिष्ट समस्याओं का समाधान किस प्रकार करें
शिक्षक की कुशलता
● विषय का पूर्ण ज्ञान हो
● बालकों के प्रति प्रेम व सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करे
● बालकों की समस्याओं को जानने वाला हो
● शिक्षण सूत्रों व सिद्धांतों का ज्ञान हो
● बालक का सच्चा मित्र व पथ प्रदर्शक हो
शिक्षार्थी - शिक्षा मनोवैज्ञानिकों ने शिक्षार्थी को शिक्षा का केंद्र बिंदु मानाा है जिसकेेे चारों ओर शिक्षण प्रक्रियाा घूमती है
◆ आधुनिक विचारधारा में शिक्षा का नियोजन बालक केे लिए और बालक के अनुसार किया जाता है
◆ बालक का महत्व सर्वोपरि माना गया है
◆ अध्यनेता जीवन मानव जीवन का श्रेष्ठ काल माना जाता है
◆ अध्यनेता काल में ही शिक्षार्थी ज्ञानार्जन करता है
पाठ्यक्रम- पाठ्यक्रम शिक्षक और शिक्षार्थी को दिशा निर्देश प्रदान करता है
कनिंघम के अनुसार- पाठ्यक्रम कलाकार के हाथ में एक यंत्र है जिसके द्वारा वह सामग्री को अपने कलागृह में मोड़ता है
शिक्षण के चर
1 स्वतंत्र चर
2 आश्रित चर
3 मध्यस्थ चर
शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारक-
1 शिक्षण उद्देश्य
2 कक्षा कक्ष की संवेगात्मक स्थिति
3 विद्यालय वातावरण व प्रभावशीलता
4 कक्षा कक्ष का मनोवैज्ञानिक वातावरण
5 भौतिक संसाधन
6 शिक्षण सामग्री
7 शिक्षक का व्यक्तित्व व कुशलता
8 बालक का व्यक्तित्व
1 संज्ञानात्मक पक्ष - इस पक्ष के उद्देश्यों का वर्गीकरण बी एस ब्लूम द्वारा 1956 में किया गया
◆ इसका संबंध बौद्धिक क्षमताओं से होता है
● ब्लूम ने इसके अंतर्गत 6 उद्देश्य निर्धारित किए
(A) ज्ञान - सूचनाओं, तथ्यों तथा संप्रत्यो की जानकारी अर्जित करना, पहचानना, आंकड़ों का प्रत्यास्मरण करना
(B) अवबोध - सीखे गए ज्ञान पर समझ विकसित करना, तुलना करना, अंतर करना, संबंध स्थापित करना, वर्गीकरण करना
(C) अनुप्रयोग - सीखे गए व समझे गए ज्ञान का व्यावहारिक परिस्थितियों में प्रयोग करना
(D) विश्लेषण - सीखे गए ज्ञान के विभिन्न खंडों को पृथक कर अलग अलग कर उनके खंड बनाना तथा उनका समाधान करना
(E) संश्लेषण - विश्लेषण के पश्चात अलग-अलग खंडों को पुनः संगठित करना उनके आधार पर उनके आधार पर नवीन निष्कर्ष का सृजन करना
(F) मूल्यांकन - सीखी गई विषय वस्तु की जांच करना कि वह किस सीमा तक आत्मसात हुई उतार कितना अपेक्षित विकसित व्यवहार गत परिवर्तन हुआ
2 भावात्मक पक्ष - इस पक्ष के उद्देश्यों का वर्गीकरण करथवाल व मसीहा ने 1994 में किया
◆ इस पक्ष का संबंध भावनाओं, रुचियों, दृष्टिकोण, संवेगों से होता है
★ इसके अंतर्गत 5 उद्देश्य निर्धारित किए गए हैं
(A) आग्रहण करना - बालकों को प्रेरित करना ताकि उनमें विषय गत मूल्यों को प्राप्त करने की इच्छा जागृत हो सके
(B) अनुक्रिया - दिए गए निर्देश के अनुसार कार्य करना जैसे - उत्तर देना , आज्ञा पालन करना
(C)अनुमूल्यन - किन्हीं विशिष्ट मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता दिखाना
(D) संगठन - इसके अंतर्गत बालक अपने पूर्व अनुभवों को एक दूसरे से जोड़कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है
जैसे - सामान्यीकरण करना या तथा पुष्टि करना
(E) चरित्रीकरण - इसके अंतर्गत अपनाए गए मूल्य व्यक्ति के व्यवहार का स्थायी हिस्सा बन जाते हैं
जैसे निश्चय करना, किसी कार्य के संबंध में निरंतर एवं नियमित विचार करना
3 क्रियात्मक पक्ष - सिंपसन ने 1969 में क्रियात्मक पक्ष का वर्गीकरण किया
◆ इस पक्ष का संबंध व्यक्ति के शारीरिक कौशलों से होता है जिसमें अभ्यास की आवश्यकता होती है
★इसके अंतर्गत 5 उद्देश्य निर्धारित किए गए
(A) उद्दीपन - व्यक्ति किसी भी कार्य को होते देख स्वयं कार्य करना प्रारंभ करता है
(B) कार्य करना/परिचालन - इसमें व्यक्ति दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए उनके अनुसार कार्य करता है
(C) परिशुद्धता - इसमें व्यक्ति अपने अभ्यास द्वारा अपनी क्रिया की त्रुटियों को कम करने का प्रयास करता है
(D) समन्वय - इसके अंतर्गत व्यक्ति एक साथ कई कार्य करता है और उनमें समन्वय स्थापित करता है
(E) आदत निर्माण - यह क्रियात्मक पक्ष का सबसे उच्च स्तर है, इसमें व्यक्ति का कार्य करना यंत्रवत हो जाता है
■ उक्त तीनों पक्ष संज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक को अलग नहीं किया जा सकता, यह तीनों एक दूसरे पर निर्भर हैं
Ncf-2005 (राष्ट्रीय पाठ्यचर्या कार्यक्रम 2005)
◆ सर्वप्रथम ncf-2005 का विचार NPE -1986 के तहत किया गया
◆ NPE-1986 में इस बात पर बल दिया गया कि पाठ्यचर्या को राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण की पृष्ठभूमि तैयार करनी चाहिए
◆ NPE-1986 के तहत पाठ्यचर्या राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली को विकसित करने का साधन है
◆ POA - 1992 ( प्रोग्राम ऑफ एक्शन ) में प्रसंगिकता, गुणवत्ता, लचीलापन के तत्वों पर बल दिया और NPE के प्रावधानों का क्रियान्वयन किया
■ 1993 में यशपाल शर्मा समिति ने कहा की बालकों को तनावमुक्त व बिना बोझ की शिक्षा प्रदान की जाए
■ स्कूली शिक्षा के विकास हेतु पाठ्यचर्या का निर्माण MHRD द्वारा किया गया
◆ NCF-2005 विद्यालय शिक्षा का सबसे नवीनतम दस्तावेज माना जाता है
◆ NCF-2005 का निर्माण का प्रमुख उद्देश्य बालकों के सामाजिक गुणों का विकास करने तथा उन्हें सुयोग्य नागरिक बनाने से है इसी कारण ncf-2005 में समाजिक अध्ययन जैसा नवीन विषय जोड़ा गया
■ NCF-1975 (first)
■ NCF-1988 (second)
■ NCFSE - 2000 (third)
■ NCF-2005
★ NCF-2005 का निर्माण रविंद्र नाथ टैगोर के सभ्यताएं एंव प्रगति निबंध की तर्ज पर किया गया, टैगोर के अनुसार जो सीखता है वही शिक्षक है, जो सीखता नहीं वो शिक्षक नहीं,जो जलता है वही दीपक है, जो जलता नहीं वो दीपक नहीं
■ Ncf-2005 में शिक्षकों की क्रियाशीलता में वृद्धि करने पर सर्वाधिक बल दिया गया
■ ncf-2005 की शुरुआत गुरु रविंद्र नाथ टैगोर के उद्धरण से की गई - संरचनात्मक एवं उधार आनंद बचपन की कुंजी है किंतु नासमझ व्यस्क द्वारा विकृति को खतरा है
◆ ncf-2005 के तहत लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर सर्वाधिक बल दिया गया
◆ ncf-2005 की कार्यशाला का आयोजन नई दिल्ली में किया गया
◆ ncf-2005 के तहत बालकों को प्रारंभिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में दी जानी चाहिए
◆ ncf-2005 के तहत बालकों के मूल्यांकन पर सर्वाधिक बल दिया गया जिसके तहत निम्न मूल्यांकन प्रणाली पर बल दिया गया -
1 सामूहिक मूल्यांकन प्रणाली
2 खुली पुस्तक मूल्यांकन प्रणाली
3 CCE
4 परीक्षा मूल्यांकन प्रणाली -
(a) वस्तुनिष्ठ (ब) निबंधात्मक
■ ncf-2005 में CCE पर विशेष बल दिया गया
■ Ncf-2005 का निर्माण NCERT के तत्वाधान में हुआ
■ NCF-2005 का निर्माण का श्रेय प्रोफेसर यशपाल शर्मा को जाता है
ncf-2005-
3 - NCERT सदस्य
35- कार्यकारी सदस्य
■ राजस्थान से एकमात्र सदस्य रोहित धनकर (जयपुर) थे
◆ ncf-2005 का निर्माण 22 भाषाओं में लागू किया गया, जिसे 17 राज्यों ने स्वीकार किया
■ NCF-2005 के तहत 5 मार्गदर्शी सिद्धांतों का वर्णन किया गया-
1 बालकों के संपूर्ण ज्ञान को स्कूल के बाहरी जीवन से जोड़ने का सिद्धांत
2 बालकों को रटने की प्रवृत्ति से मुक्ति का सिद्धांत
3 पाठ्यचर्या पाठ्य पुस्तक केंद्रित ना रह जाए का सिद्धांत (सह शैक्षिक गतिविधियां शामिल की जाए )
4 बालक की परीक्षा प्रणालियों को लचीलेपन से युक्त करना तथा कक्षागत गतिविधियों से जोड़ा जाए
5 राष्ट्रहित के प्रति आस्थावान विद्यार्थी तैयार किया जाए
Ncf-2005 के सुधार -
◆ ज्ञात से अज्ञात, मूर्त से अमूर्त की ओर शिक्षण सूत्र का प्रयोग
◆ ज्ञान को सूचना नहीं माना जाए
◆ विशाल पाठ्यक्रम व मोटी किताबे शिक्षा प्रणाली की असफलता का कारण न बने
◆ मूल्यों का उदाहरण न देकर वातावरण की स्थापना की जाए
◆ अभिभावकों को बालकों से उच्च आकांक्षा नहीं रखनी चाहिए
◆ बच्चों को बाहरी जीवन से जोड़ना
◆ कक्षा कक्ष में श्रेष्ठ वातावरण का निर्माण किया जाना चाहिए
◆ विद्यार्थियों को विचारों के अभिव्यक्ति का अवसर प्रदान करना चाहिए
◆ प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में दी जाए
◆ बालकों को मौलिक चिंतन के अवसर प्रदान किए जाए
◆शिक्षकों को अकादमिक संसाधन व नवाचार की सामग्री समय पर पहुंचाई जाए
ncf-2005 के निर्देशक तत्व
1 विद्यालय का माहौल पाठ्यचर्या का हिस्सा हो
2 पढ़ाई को रिटर्न प्रणाली से मुक्ति मिले
3 परीक्षा को कक्षा की गतिविधि से जोड़ दें
4 विद्यार्थियों को चौमुखी विकास के अवसर प्रदान करें
5 प्रजातांत्रिक ढांचे को मजबूत बना दे
ncf-2005 में चार महत्वपूर्ण विषयों के बारे में सुझाव देता है -
1 भाषा -
● त्रिभाषा सूत्र लागू (कोठारी आयोग द्वारा)
● शिक्षा मातृभाषा के रूप में
● छात्रों में बहुभाषी प्रवीणता का विकास
● अंग्रेजी कक्षा 1 से अनिवार्य है
● आरंभिक स्तर पर भाषा कौशलों का विकास
2 विज्ञान
● बालकों को दैनिक जीवन के अनुभवों की सत्यता जानने व उनका विश्लेषण करने में सक्षम बनाना
● बाल विज्ञान का प्रारंभ कर देश में अन्वेषण का माहौल उत्पन्न किया जाना चाहिए
● बालकों को प्रयोजना के माध्यम से ज्ञान दिया जाना चाहिए
3 गणित
● अनुभवों से गुथी हुई गणित पढ़ाना
● अमूर्त की कल्पना में तार्किक चिंतन का विकास
● गणित का अन्य विषयों से सहसंबंध स्थापित करना
● बालकों की वैचारिक क्रिया का गणितीकरण करना
4 सामाजिक विज्ञान-
● जेंडर के संबंध में न्याय
● स्थानीय निकायों को मजबूत करना
● एससी, एसटी के मामलों में जागरूकता
● ज्ञान के विशिष्ट क्षेत्र की खोज
Ncf-2005 के प्रमुख उद्देश्य-
● बालकों को बिना बोझ की शिक्षा प्रदान की जाए
● रटन्त प्रवृत्ति पर रोक
● बालकों की बौद्धिक क्षमता का विकास करना
● बालकों की योग्यता अनुसार पाठ्यचर्या का निर्माण करना
● शिक्षकों की क्रियाशीलता में वृद्धि करना
● शिक्षकों को प्रेरक के रूप में तैयार करना
● सामाजिक गुणों का विकास करना
● कंप्यूटर शिक्षा को अनिवार्य बनाना
● पर्यावरण शिक्षा को अनिवार्य करना
● दसवीं कक्षा के परिणाम में गुणात्मक सुधार करना
● त्रि-भाषा फार्मूले को लागू करना
● करके सीखने के नियम पर बल
● विद्यालय शिक्षा में ग्रेड प्रणाली को प्रारंभ करना
शिक्षा का अधिकार अधिनियम-2009
◆ 1937 में वर्धा सम्मेलन में महात्मा गांधी व जाकिर हुसैन के द्वारा शिक्षा के महत्व को रेखांकित किया गया
◆ 1937 में ही महात्मा गांधी द्वारा बुनियादी शिक्षा की नींव रखी गई
◆ सर्वप्रथम 1910 में गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा समावेशी शिक्षा का विचार दिया गया
◆ 1948 में डॉ राधाकृष्णन द्वारा निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा का विचार प्रस्तुत किया गया
★ राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1968, 1986, 1988, 1992 में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की कल्पना की गई किंतु व्यवहारिक रूप से उन्हें लागू नहीं किया जा सका
◆ 1976 में संविधान के 42 वें संविधान संशोधन में शिक्षा को समवर्ती सूची में शामिल किया गया
◆ 1993 में प्रोफसर यशपाल शर्मा ने शिक्षा के क्षेत्र में तनाव एंव बोझ मुक्त शिक्षा समिति का गठन किया
◆ Ncf-2005 में पाठ्य चर्चा पर विशेष चर्चा की गई
◆ संविधान के 86 वें संविधान संशोधन द्वारा 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के सभी बालकों को शिक्षा का मौलिक अधिकार प्रदान किया गया (अनुच्छेद 21( a))
■ 20 जुलाई 2009 को आरटीई राज्यसभा में पारित
■ 4 अगस्त 2009 को लोकसभा में पारित
■ 26 अगस्त 2009 को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने हस्ताक्षर किए
★ अंतिम रूप से शिक्षा के इस अधिकार को पारित करने का श्रेय भारतीय संसद को जाता है
■ 27 अगस्त 2009 को शिक्षा के इस अधिकार की उद्घोषणा की गई
★ 1 अप्रैल 2010 को संपूर्ण भारत में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार लागू किया गया (जम्मू कश्मीर को छोड़कर)
■ शिक्षा के इस अधिकार को लागू करने वाला भारत विश्व का 135 वां देश था (पहला - प्रशा)
◆ अनुच्छेद 45 के तहत राज्य को यह आदेश दिया गया कि राज्य पिछड़े एवं अभावग्रस्त बालकों एंव 3 से 6 साल के बालकों की शिक्षा की व्यवस्था करेगा
◆ अनुच्छेद 51(क) भाग 4 में भारतीय अभिभावकों के मौलिक कर्तव्य में वृद्धि की गई तथा आदेश दिया गया कि प्रत्येक अभिभावक अपने बालक को प्रारंभिक शिक्षा को पूर्ण करवाएंगे
अधिनियम की प्रमुख विशेषताएं-
◆ प्रारंभिक शिक्षा से तात्पर्य पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक की शिक्षा है
◆ प्रत्येक विद्यालय में न्यूनतम कार्य दिवस एवं शिक्षण के घंटे निर्धारित रहेंगे
◆ इस अधिनियम के तहत अध्यापकों को गैर शैक्षिक कार्य में नहीं लगाया जाएगा
◆ कक्षा 1 से 8 तक किसी भी विद्यार्थी को फेल नहीं किया जाएगा तथा आठवीं कक्षा उत्तीर्ण का प्रमाण पत्र सभी बालकों को प्रदान किया जाएगा
◆ कोई भी विद्यालय सरकारी मान्यता के बिना नहीं चलेगा
◆ शिक्षा का उद्देश्य सर्वांगीण विकास करना है
◆ प्रत्येक छात्र को आयु के अनुसार प्रवेश दिया जाएगा
◆ प्रत्येक शिक्षक न्यूनतम 45 घंटे प्रति सप्ताह अनिवार्य रूप से कार्य करेगा
◆ प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण रूप से बाल केंद्रित होगी
◆प्रारंभिक शिक्षा में शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा होगी
◆ उच्च प्राथमिक शिक्षा में शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा तथा राज्य भाषा भी हो सकती है
■ 6 से 14 वर्ष के बालक को निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा दी जाएगी
◆ बच्चों की स्कूल फीस के साथ-साथ यूनिफॉर्म, परिवहन व मिड डे मील जैसी चीजों पर खर्च शून्य होगा
◆ राज्य सरकार 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए प्री स्कूलिंग की व्यवस्था करेगी
● अभिभावकों के इंटरव्यू तथा बच्चों के स्क्रीनिंग टेस्ट पर प्रतिबंध रहेगा
■ जहां तक संभव हो शिक्षा मातृभाषा में ही होगी
■आरटीई 2009 में 7 अध्याय में 38 धाराओं का उल्लेख है-
आरटीई 2009
अध्याय 1
◆ प्रारंभिक परिचय
◆ धारा 1 व 2
धारा 1
नाम - RTE -2009
विस्तार संपूर्ण - भारत में
लागू - 1 अप्रैल 2010
धारा 2 -
◆ उप धाराओं का उल्लेख
◆ बालक से आशय- 6 से 14 वर्ष / 6 -18 वर्ष
◆ प्रारंभिक शिक्षा 1 से 8 तक
◆ त्रिभाषा फार्मूला लागू
◆ विद्यालय के प्रकार व प्रति बालक फीस का निर्धारण
अध्याय 2
■ निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान
■ धारा 3 से 5 तक
धारा 3 - 6 से 14 वर्ष के बालकों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार लागू
धारा 4 - ड्रॉप आउट बालको या विद्यालय से न जुड़े बालकों को आयु के अनुसार कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा
धारा 5 - टीसी मांगने पर टीसी प्रदान करना
अध्याय 3
■ समुचित सरकार, स्थानीय प्राधिकारी, माता पिता के कर्तव्य
■ धारा 6 से 11 तक
धारा 6 - विद्यालय की स्थापना के संबंध में
कक्षा 1 से 5 तक - 1 किलोमीटर पर
कक्षा 6 से 8 तक - 3 किलोमीटर पर
धारा 7 - वित्तीय अनुपात
केंद्र : राज्य
55 : 45
65 : 35
68 : 32
90 : 10 (पूर्वोत्तर राज्यों में)
धारा 8 - समुचित सरकार के कर्तव्य
धारा 9 - स्थानीय प्राधिकारी के कर्तव्य
धारा 10 - माता पिता के कर्तव्य
धारा 11 - 3 से 6 वर्ष के बालकों की शिक्षा की व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जाएगी
अध्याय 4 -
■ विद्यालय में शिक्षकों के कार्य, दायित्व व अधिकार
■ धारा 12 से 28 तक
धारा 12 - प्रत्येक निजी विद्यालयों को कम से कम 25% दुर्बल तथा वंचित वर्ग के बालकों को निशुल्क शिक्षा देनी होगी
धारा 13 - प्रवेश शुल्क , अनुवीक्षण प्रक्रिया पर रोक
◆ जुर्माना - शुल्क का 10 गुना
धारा 14 - आयु प्रमाण पत्र के अभाव में प्रवेश से वंचित नहीं रखा जाएगा
धारा 15 -
◆ प्रवेश तिथि का विस्तार है
◆ 30 सितंबर प्रवेश की अंतिम तिथि
धारा 16 - कक्षा 1 से 8 तक के बालकों को फेल नहीं किया जाएगा
Note- आरटीई 2009 की सबसे बड़ी कमी यह मानी गई है कि इसमें 14 वर्ष के पश्चात की शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है
धारा 17 - बालक को मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित नहीं किया जाएगा
धारा 18 - विद्यालय की मान्यता के संदर्भ में
◆ बिना मान्यता संचालन पर ₹10000 प्रतिदिन के हिसाब से दंड का प्रावधान
धारा 19 - विद्यालय के मानकों के संदर्भ में
● विद्यालय के भवन का होना
● खेल मैदान होना
● पुस्तकालय होना
● शिक्षण सत्र में शिक्षण के समय का निर्धारण
प्राथमिक विद्यालय
◆ 1 सप्ताह - 45 घंटे (तैयारी सहित)
◆ 1 वर्ष - 800 घंटे / 200 दिन
उच्च प्राथमिक विद्यालय
◆ 1 सप्ताह - 48 घंटे (तैयारी सहित)
◆ 1 वर्ष 1000 घंटे / 220 दिन
धारा 20 - अनुसूची में परिवर्तन
● शिक्षा के अधिकार में परिवर्तन का पूर्ण अधिकार केंद्र को जाता है
● समवर्ती सूची का विषय होने के कारण केंद्र व राज्य दोनों कानून बना सकते हैं
धारा 21 - विद्यालय प्रबंधन समिति SMC का गठन
SMC - 15 सदस्य, 50% महिला, 75% अभिभावक
अध्यक्ष - अभिभावक
सचिव- HM (पदेन)
◆ SMC की बैठक 3 माह में एक बार अमावस्या के दिन
◆ कार्यकारी समिति की बैठक प्रत्येक माह अमावस्या के दिन
धारा 22 - विद्यालय विकास योजना का निर्माण (SDP) तथा क्रियान्वयन SMC द्वारा किया जाएगा
धारा 23 - शिक्षक पद नियुक्ति हेतु न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता के संबंध में ( TET पास अनिवार्य )
धारा 24 - शिक्षक के कर्तव्य व दायित्व
धारा 25 - शिक्षक छात्र अनुपात
शिक्षक : छात्र
1 : 30
2 : 31-60
3 : 61-90
4 : 91-120
5+1(HM) : 121-200
■ विद्यालय स्तर के अनुसार
1-5 तक = 1 : 30
1-8 तक = 1 : 40
6-8 तक। = 1 : 35
धारा 26 - रिक्त पदों के संबंध में कुल स्वीकृत पदों के 10 परसें से अधिक पद रिक्त नहीं रखे जाएंगे
धारा 27- गैर शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की जाएगी
NOTE - चुनाव, जनगणना व राष्ट्रीय आपदा में शिक्षक की नियुक्ति की जा सकती है
धारा 28 - प्राइवेट ट्यूशन पर रोक
अध्याय 5 -
◆ प्रारंभिक शिक्षा व पाठ्यक्रम
◆ धारा 29 व 30
धारा 29 -
★ पाठ्यक्रम का निर्माण
★ CCE लागू किया जाए
धारा 30 - आरंभिक शिक्षा पूर्ण होने तक कोई बोर्ड परीक्षा न हो
● अंतिम परीक्षा का प्रमाण पत्र जारी किया जाए
अध्याय 6 -
■ बालक के शिक्षा का अधिकार का सरंक्षण
■ धारा 31 से 34 तक
धारा 31 - शिक्षा के अधिकार की मॉनिटरिंग करना
धारा 32 - बालकों की शिकायतों का निवारण
धारा 33 - राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का गठन
धारा 34 - राज्य सलाहकार परिषद का गठन
अध्याय 7 -
◆ विस्तार
◆ धारा 35 से 38 तक
धारा 35 - शैक्षणिक योजनाओं का निर्माण केंद्र करेगी
धारा 36 - अभियोजन हेतु मंजूरी का प्रावधान
धारा 37 - SMC के विरुद्ध विधिक कार्यवाही संबंधी क्रिया
धारा 38 - राज्य सरकार को आरटीई में संशोधन का प्रावधान किया गया है
Note - आरटीई 2009 की धारा 38 के तहत राजस्थान में 29 मार्च 2011 को राजस्थान निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार लागू किया गया जिसमें 10 अध्याय में 29 धाराओं का उल्लेख है
क्रियात्मक अनुसंधान
● विद्यालय में उत्पन्न होने वाली दिन प्रतिदिन की शैक्षणिक समस्याओं का समाधान करने की प्रक्रिया क्रियात्मक अनुसंधान कहलाती है
◆ विद्यालय के दिन प्रतिदिन की समस्याओं का अध्ययन कर उनका समाधान किया जाता है ताकि विद्यालय में सुधार हो सके
◆ क्रियात्मक अनुसंधान प्रक्रिया का संचालन शिक्षकों प्रबंधकों व संस्था प्रधानों द्वारा किया जाता है
● क्रियात्मक अनुसंधान का क्षेत्र बड़ा व्यापक है वर्तमान युग में इस कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं बचा है जहां क्रियात्मक अनुसंधान न किए गए हैं चाहे विद्यालय हो, लड़ाई का मैदान हो, खेल अथवा पहलवानों का अखाड़ा हो
◆ क्रियात्मक अनुसंधान का सर्वप्रथम प्रयोग कोलियर ने किया
◆ 1946 में सामाजिक संबंधों में सुधार करने के लिए सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान का प्रयोग लेविन द्वारा किया गया
◆ शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान का सर्वप्रथम प्रयोग 1953 में स्टीफन एम कोरे द्वारा किया गया
◆ अतः स्टीफन एम कोरे को क्रियात्मक अनुसंधान का जनक माना जाता है
◆ भारत में सर्वप्रथम क्रियात्मक अनुसंधान शब्द का प्रयोग बंकिघम द्वारा किया गया
◆ स्टीफन एम कोरे के अनुसार - क्रियात्मक अनुसंधान किसी भी शैक्षणिक समस्या का वैज्ञानिक तरीके से समाधान करने की प्रक्रिया है
◆ गुड के अनुसार - क्रियात्मक अनुसंधान उस कार्यक्रम का अंश होता है जिसका प्रमुख उद्देश्य विद्या विद्यालय की विद्यमान अव्यवस्थाओं में परिवर्तन करने से होता है
◆ मुनरो के अनुसार - क्रियात्मक अनुसंधान एक विधि है जिसमें दिए गए सुझाव विभिन्न तथ्यों पर आधारित होते हैं
◆ कोठारी आयोग ने कहा - कि भारत के भाग्य का निर्माण उसकी कक्षा कक्ष में हो रहा है
◆ कार्टर वी गुड के अनुसार - क्रियात्मक अनुसंधान शिक्षकों निरीक्षकों और प्रशासकों द्वारा अपने निर्णय और कार्यों की गुणात्मक उन्नति के लिए प्रयोग में किया जाने वाला अनुसंधान है
● स्टीफन एम कोरे ने अपनी पुस्तक एक्शन रिसर्च के अंतर्गत अनुसंधान के दो प्रकार बताएं
1 मौलिक अनुसंधान
2 क्रियात्मक अनुसंधान
क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान
1 समस्या का चयन करना
2 समस्या को परिभाषित करना
3 समस्या के कारणों का विश्लेषण करना
4 उपकल्पना व परिकल्पनाओं का निर्माण करना
5 उपकल्पना परीक्षण का प्रारूप तैयार करना
6 तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष निकालना या समाधान करना
क्रियात्मक अनुसंधान के क्षेत्र या समस्याएं
1 विद्यार्थी से संबंधित
● विद्यालय न आना
● देरी से आना
● पलायन करना
● झूठ बोलना
● कक्षा में चोरी करना
● कक्षा में शोर मचाना
● विद्यालय की संपत्ति को नुकसान पहुंचाना
2 शिक्षक से संबंधित
● शिक्षक का व्यक्तित्व
● विषय वस्तु का ज्ञान में होना
● समय पर विद्यालय न आना
● अच्छा वक्ता न होना
● शिक्षण सहायक सामग्रियों का प्रयोग न कर पाना
3 शिक्षण से संबंधित
● विषय वस्तु की प्रकृति व आकार
● बाल केंद्रित शिक्षा का अभाव
● अध्यापक व बालक के बीच अन्तः क्रियाओं का अभाव
● सहायक सामग्री का अभाव
● विषय वस्तु का अरुचिकर होना
4 प्रशासन व संस्थान से संबंधित
● लोकतांत्रिक वातावरण का अभाव
● विद्यालय भवन का अभाव
● खेल मैदान व पुस्तकालय का अभाव
● उचित प्रबंधन व प्रशासन का अभाव
5 मूल्यांकन व परीक्षा से संबंधित
◆ मूल्यांकन में वैधता व विश्वसनीयता का अभाव
◆ मूल्यांकन में निष्पक्षता का अभाव
◆ मूल्यांकन में नवीन तकनीकों व विधियों का काम में ले लेना
क्रियात्मक अनुसंधान के उद्देश्य
● शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में सुधार करना
● विद्यालय की शैक्षणक समस्याओं का समाधान करना
● नवीन शिक्षण विधियों का चयन करना
● श्रव्य दृश्य सहायक सामग्री का निर्धारण करना
● शिक्षकों की क्रियाशीलता में वृद्धि करना
● विद्यालय की गतिविधियों को प्रभावी बनाना
● शिक्षकों की कमजोरियों को दूर करना
● अध्यापकों में सामंजस्य स्थापित करना
● लोकतांत्रिक मूल्यों का निर्माण करना
● व्यवसायिक दृष्टिकोण विकसित करना
क्रियात्मक अनुसंधान की विशेषता
◆ इसमें समस्या के समाधान में कम समय लगता है
◆ शिक्षकों व प्रबंधकों में उत्तरदायित्व की भावना का विकास होता है
◆ क्रियात्मक अनुसंधान सामाजिक व वास्तविक परिस्थितियों में ही संभव है
◆ क्रियात्मक अनुसंधान में कल्पना उपकल्पनाओं का सफलतापूर्वक परीक्षण किया जा सकता है
◆ क्रियात्मक अनुसंधान में बालकों को शामिल नहीं किया जाता बल्कि उनकी शैक्षणिक समस्याओं को शामिल कर उनके समाधान का प्रयास किया जाता है
क्रियात्मक अनुसंधान का महत्व
■ विद्यालय की वास्तविक शैक्षणिक समस्याओं का समाधान करना
◆ क्रियात्मक अनुसंधान का प्रयोग वर्तमान में सभी क्षेत्रों में कुशलता पूर्वक किया जा रहा है
■ वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में सहायक
■ परंपरागत धारणाओं का खंडन किया जा सकता है
■ बदलती परिस्थिति के अनुसार समस्या का समाधान संभव है
■ परिस्थिति में परिवर्तन किया जा सकता है
■ अधिगम योग्य वातावरण के निर्माण में सहायक है
■ बालकों के साथ से शिक्षको व प्रबंधकों की समस्याओं के समाधान में सहायता मिलती है
■ मूल्यांकन - एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसका निर्माण मूल्य + अंकन के मिलने से हुआ
मूल्यांकन के प्रकार - मनोवैज्ञानिकों ने मूल्यांकन के दो प्रकार बताए हैं
1 रचनात्मक मूल्यांकन (FA) -शिक्षण कार्य के दौरान छात्रों की कमजोरियों का पता लगाने का अथार्थ शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए FA का आयोजन किया जाता है
◆ इसके अंक रिपोर्ट कार्ड में शामिल नहीं किये जातेे
◆ यह सीखने के लिए आकलन है
2 योगात्मक मूल्यांकन (SA) - एक निश्चित अवधि के पश्चात इस बात का पता लगाना कि शैक्षिक उद्देश्य कहां तक प्राप्त हुए हैं SA मूल्यांकन कहलाता है
◆ इसके ग्रेड्स तथा प्राप्तांक रिपोर्ट कार्ड में शामिल किए जाते हैं
◆ यह सीखने का आकलन है
मूल्यांकन की प्रमुख विधियां
1 ज्ञानात्मक पक्ष -
■ मौखिक ■ लिखित ■ प्रायोगिक
लिखित-
(A) वस्तुनिष्ठ (B) निबंधात्मक
वस्तुनिष्ठ -
(अ) प्रत्यास्मरण - सामान्य, रिक्त स्थान
(ब) प्रत्याभिज्ञान - सुमेल, बेमेल, हां / ना , बहुविकल्पी
2 भावात्मक पक्ष-
◆ CAT ◆ TAT ◆ IBT ◆ SAT ◆ WAT ◆ IQ
3 क्रियात्मक पक्ष-
● जीवन इतिहास विधि ● समाजमिति विधि
● प्रश्नावली विधि ● साक्षात्कार विधि
वस्तुनिष्ठ प्रश्न -
◆ सर्वप्रथम विचार- होराशमेन ने दिया
◆ शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग J M राइस ने किया
गुण -
● एक प्रश्न का एक ही उत्तर
● वैधता व विश्वसनीयता का गुण सर्वाधिक
● प्रश्नों की जांच आसान
● पक्षपात संभव नहीं
● कम समय में अधिक बालकों का मूल्यांकन संभव
दोष
● निर्माण करना जटिल कार्य
● नकल की संभावना
● लेखन कार्य का विकास संभव नहीं
● मंदबुद्धि बालकों के लिए अनुपयोगी
● अत्यंत खर्चीली
● अनुमान से उत्तर देने की संभावना
निबंधात्मक प्रश्न - सर्वप्रथम 1702 में लंदन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में पहली बार प्रयोग में किया गया
गुण -
◆ निर्माण आसान
◆ व्यवहारिक गुणों का विकास
◆ लेखन कौशल का विकास
◆ अभिव्यक्ति की क्षमता का विकास
◆ व्याकरण संबंधी अशुद्धियों का निराकरण
दोष
◆ इनकी जांच कठिन कार्य
◆ पक्षपात संभव
◆ विषय विशेषज्ञों की आवश्यकता
◆ वैधता व विश्वसनीयता का अभाव
◆ संपूर्ण पाठ्यक्रम का मूल्यांकन संभव नहीं
मूल्यांकन की कसौटीयां
(अ)- व्याहारिक कसौटियां-
1 उद्देश्यता - किसी परीक्षण का निर्माण करने से पहले उसके उद्देश्यय का निर्धारण कर लेना चाहिए प्रत्येक परीक्षण उद्देश्य आधारित होना चाहिए
2 व्यापकता - परीक्षण के निर्माण में विषय वस्तु के सभी पक्षों का समावेश व्यापकता में आताा है
3 मितव्यता - परीक्षण के निर्माण में कम से कम न धन का व्यय करना
4 सर्वमान्यता - किसी परीक्षण का निर्माण इस प्रकार से किया जाए कि किसी भी व्यक्ति द्वारा उस परीक्षण का उपयोग किसी भी परिस्थिति में किया जा सके
5 न्याययुक्तता - परीक्षण के द्वारा जिस पर भी निष्कर्ष निकाला जाए वह निष्कर्ष उसकी वास्तविकता व समक्षता को प्रकट करने वाला होना चाहिए, न्याययुक्तता के अंतर्गत किसी भी पक्ष पर पक्षपात की भावना निहित नहींं होती
6 प्रतिनिधित्वता - किसी परीक्षण का निर्माण जिन बिंदुओं को ध्यान में रखकर किया जाए उन बिंदुओं को संपूर्ण विषय वस्तु का प्रतिनिधित्व करने वाला होना चाहिए
7 समक्षता - जिस परीक्षण का निर्माण किया जाए वह व्यवहारिक को तथा सभी के समक्ष हो
8 गतिशीलता - परीक्षण के कथनो हिंदी एंव उन्हें पूर्ण करने के समय के मध्य गतिशीलता का भाव होना चाहिए
● परीक्षण की गति का निर्धारण इस प्रकार से किया जाए कि निश्चित समय में परीक्षण को पूर्ण किया जा सके
9 भाषा - किसी भी परीक्षण का निर्माण करते समय यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि परीक्षण की भाषा सरल व सहज होनी चाहिए
10 व्यवहारिकता - किसी भी परीक्षण का निर्माण करते समय परीक्षण में व्यवहारिकता के गुणों को समावेशित किया जाना अति महत्वपूर्ण कार्य है
(ब) मूल्यांकन की तकनीकी कसौटियां
1 वैधता - किसी परीक्षण का निर्माण जिस उद्देश्य को ध्यान में रखकर किया गया हो अगर वह परीक्षण उस उद्देश्य की पूर्ति करने में सहायक है या उस उद्देश्य की पूर्ति करता हो तो परीक्षण का यह गुण वैधता का गुण कहलाता है
2 विश्वसनीयता - विश्वसनीयता का अर्थ परीक्षण के सही होने से है, किसी परीक्षण को बार-बार अंकन करने के उपरांत भी उसके अंक भार में परिवर्तन न होना ही विश्वसनीयता कहलाती है
Note - विश्वसनीयता को चार बिंदु प्रभावित करते हैं
1 स्मृति
2 प्रायोगिक कार्य
3 अभिरुचि
4 ध्यान केंद्रित करने की क्षमता
3 वस्तुनिष्ठता - किसी परीक्षण को अलग-अलग प्रशिक्षकों द्वारा बार-बार अंकन करने के उपरांत भी उसके अंक भार में कोई परिवर्तन नहीं होता है तो परीक्षण का यह गुण वस्तुनिष्ठता कहलाता है
परीक्षण में वस्तुनिष्ठता 2 पदों पर निर्भर करती है
1 अंक प्रदान करना
2 पदों की व्याख्या करना
Note - वस्तुनिष्ठ प्रश्नों में विश्वसनीयता व वैधता का गुण सर्वाधिक पाया जाता है
4 व्यापकता - किसी भी परीक्षण का निर्माण बालकों के शैक्षणिक उद्देश्यों एवं संपूर्ण पाठ्यक्रम के आधार पर किया गया हो जिसके माध्यम से संपूर्ण पाठ्यक्रम का समावेशन किया जा सके अतः शिक्षण का यह गुण व्यापकता का गुण कहलाता है
Note - वस्तुनिष्ठ प्रश्नों में व्यापकता का गुण सर्वाधिक पाया जाता है
5 विभेदकारिता - किसी भी परीक्षण का निर्माण बालकों की बौद्धिक क्षमता को ध्यान में रखकर किया गया हो तथा वह उसके आधार पर कक्षा कक्ष का वर्गीकरण करने में सहायता प्राप्त होती हो तो प्रश्नपत्र का यह गुण विभेदकारिता का गुण कहलाता है
6 मानकता - किसी भी प्रश्न पत्र का निर्माण प्रश्न पत्र की कठिनाई के स्तर एवं प्रश्नपत्र को ध्यान में रखकर किया गया हो तो प्रश्नपत्र का यह गुण मानकता के गुण को प्रदर्शित करता है
Note - प्रत्येक प्रश्नपत्र की मानकता का अनुपात 20:60:20 (1:3:1) होता है
7 व्यवहारिकता- प्रत्येक प्रश्नपत्र में व्यवहारिक गुणों का होना अति आवश्यक है क्योंकि व्यवहारिक गुणों के अभाव में बालकों का मूल्यांकन संभव नहीं है अतः किसी भी परीक्षण का निर्माण करते समय व्यवहारिक गुणों के आधार पर ही किया जाना चाहिए जिससे बालक अपने दैनिक जीवन के विचार व अनुभवों के माध्यम से उत्तर लिख सके
Note - निबंधात्मक प्रश्नों में व्यवहारिकता का गुण सर्वाधिक पाया जाता ह
मूल्यांकन की आवश्यकताएं
◆ शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति किस हद तक हुई
◆ कक्षा कक्ष के अनुभव किस हद तक प्रभावी रहे
◆ छात्रों की कठिनाइयों का निर्धारण करना
◆ कठिनाइयों को दूर करने की व्यवस्था करना
◆ कक्षा कक्ष के परिणाम को जांचना
मूल्यांकन के प्रमुख सिद्धांत
1 मूल्य निर्धारण का सिद्धांत
2 निरंतरता का सिद्धांत
3 विभेदीकरण का सिद्धांत
4 व्यापकता का सिद्धांत
5 संपूर्ण व्यक्तित्व की जांच का सिद्धांत
मूल्यांकन की उपयोगिता
● कठिन उद्देश्यों का चयन करने में उपयोगी
● पाठ्यक्रम की जांच करने में उपयोगी
● पाठ्यक्रम में परिवर्तन करने में उपयोगी
● अधिगम के लिए अभिप्रेरित करने में उपयोगी
● छात्रों की स्थिति का निर्धारण करने में उपयोगी
● व्यक्ति की योग्यताओं का चुनाव करने में उपयोगी
● कक्षा कक्ष का वर्गीकरण करने में उपयोगी
● बालकों की रुचि व क्षमता जानने में उपयोगी
● बालकों को निदानात्मक में उपचारात्मक शिक्षण कराने में उपयोगी
CCE - सतत एवं व्यापक मूल्यांकन स्कूल पर आधारित एक प्रणाली है जो बालकों के सर्वांगीण विकास पर अध्ययन करती है
सीखने के प्रतिफल - किसी शिक्षण प्रक्रिया में भाग लेने के दौरान छात्र द्वारा प्रदर्शित विशिष्ट ज्ञान कौशल जिन का मापन किया जा सके तथा वह उसे विशिष्ट कार्य करने में सहायता प्रदान करें तो इसे सीखने का प्रतिफल कहते हैं
अथवा जो कुछ भी बच्चे ने सीखा है उसको जांचने अथवा उस परिणाम को देखने के मापदंड को अधिगम प्रतिफल के रूप में देखा जा सकता है
◆ किसी शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में संपन्न होने के पश्चात बालक के व्यवहार प्रदर्शित होने वाले विशिष्ट ज्ञान कौशल क्षमता का आकलन करने की प्रक्रिया ही सीखने का प्रतिफल है
■ सर्वप्रथम 1990 के दशक में ऑस्ट्रेलिया एवं दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में आउटकम बेसिक शिक्षा प्रणालियों का प्रारंभ हुआ इस शिक्षा प्रणाली को अमेरिका द्वारा सन् 1994 में अपनाया गया
◆ सीखने के प्रतिफल का निर्माण NCERT द्वारा किया गया
■ 2017 में NCERT ने एक सर्वे के माध्यम से यह निष्कर्ष प्राप्त किया की शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का आखिर प्रतिफल क्या निकला है यह भी सुनिश्चित रूप से पता होना ही चाहिए
◆ इस को ध्यान में रखते हुए कक्षा 1 से ही सीखने के प्रतिफल का ब्यौरा तैयार किया गया और प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के लिए उसे व्यवस्थित किया गया
● सीखने का प्रतिफल क्या ?
★ प्रत्येक बालक अलग-अलग प्रकार से सीखता है एंव सीखने के बाद वह किस नतीजे या परिणाम तक पहुंचता है इसको जानने के लिए जो मापदंड विषयवार/कक्षावार तय किए जाते हैं उनकी प्राप्ति को ही अधिगम के सीखने के प्रतिफल के रूप में जानते हैं
■ सीखने के प्रतिफल के संदर्भ में जो विचार दिए गए हैं उनमें तय किया गया है कि प्रत्येक बालक आगे की कक्षा में निरंतरता के साथ नवीन ज्ञान प्राप्त करें तथा उसे किस सीमा तक जानकारी हो प्रतिफल के संदर्भ में, उसके अधिकारी, शिक्षक अभिभावक एवं अन्य को जानने की जरूरत महसूस की गई है तथा उसी के लिए कक्षावार वर्गीकरण किया गया है
■ सीखने के लिए लक्ष्य का निर्धारण शिक्षक केंद्रित होता है
■ सीखने के प्रतिफल बाल केंद्रित होते हैं
■ सीखने के प्रतिफल एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से ही वास्तविक निष्कर्ष प्राप्त किया जाना संभव होता है
अधिगम प्रतिफल के प्रकार
1 संज्ञानात्मक कौशल - जब कोई विद्यार्थी या अधिगमकर्ता किसी विषय वस्तु को सीखने के लिए अपने सोचने विचारने की प्रक्रिया में परिवर्तन करता है तो वह अपने व्यवहार में भी बदलाव करता है और सीखने के लिए विभिन्न प्रकार के अलग-अलग रणनीतियों का सहारा लेता है तो सीखने का यह प्रकार संज्ञानात्मक कौशल को दर्शाता है
2 बौद्धिक कौशल - अधिगम प्रतिफल के इस प्रकार में विद्यार्थी या अधिगमकर्ता अवधारणाओं, नियमों अथवा प्रक्रियाओं का बोध कर रहा होता है या उनका बोध कर चुका होता है
3 शाब्दिक प्रतिफल - अधिगम प्रतिफल के इस प्रकार में यह पता चलता है कि विद्यार्थी को शाब्दिक या मौखिक जानकारियों की प्राप्ति हुई है या नहीं हुई है
4 शारीरिक प्रतिफल - अधिगम का प्रतिफल विद्यार्थी के शारीरिक रूप से परिलक्षित होता है
5 मनोवृति - अधिगम प्रतिफल का यह प्रकार अधिगमकर्ता के आंतरिक स्थिति से संबंधित है जो उसके व्यवहार से पता चलती है
सीखने के प्रतिफल की आवश्यकता
■ RTE- 2009 में यह तय किया गया कि 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बालकों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा दी जावे (पहली से आठवीं तक की शिक्षा)
■ बालक को उसके आयु स्तर के अनुसार शिक्षा दी जावे
■ बालको को स्तरानुसार कौशल विकास एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दी जाए
■ शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किए जा रहे प्रयासों की जांच की जाए
■ राष्ट्रीय स्तर पर शैक्षिक आकांक्षाओं की प्राप्ति के लिए कार्यों का क्रियान्वयन
■ राज्य को शैक्षिक दृष्टिकोण से राष्ट्रीय स्तर पर विकसित करना
सीखने के प्रतिफल के उद्देश्य
◆ RTE-2009 के अनुसार 6 से 14 वर्ष के बालकों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षण सुनिश्चित करना की
◆ शिक्षा शास्त्र, विषय की प्रकृति, विशेषताएं और सीखने के प्रतिफल में समन्वय बिठाना
◆सीखने की निरंतरता एवं सीखने के प्रगति के स्तर को जांचने के लिए मापन हेतु मापदंड तय करना
◆ शिक्षण की प्रक्रिया में सुधार करना
◆ विषय वस्तु को बाह्य वातावरण से जोड़ना
◆ अभिभावक को जागरूक बनाने के लिए
■ सीखने के प्रतिफल की विशेषताएं
◆ विषयवार टिप्पणी का होना
◆ पाठ्यचर्या की अपेक्षाएं (क्या परिवर्तन होने चाहिए)
◆ दीर्घकालीन लक्ष्यो का ज्ञान करवाना
◆ कक्षावार प्रतिफल को परिभाषित करना
◆ सीखने के प्रति फल विषय आधारित होने के साथ ही प्रक्रिया आधारित है
◆ सीखने के प्रतिफल एक प्रकार से जांच बिंदु होते हैं जिनसे मात्रात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तन पहचाने जाते हैं
◆ सीखने के प्रतिफल शिक्षक में - बालक की उपलब्धि क्या हो की समझ पैदा करते हैं जिससे शिक्षण अधिगम प्रक्रिया स्पष्ट होती है
★ शिक्षकों को चाहिए कि उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हुए अधिगम प्रक्रिया को स्थानीय संदर्भ में पूर्णता तक करें
सीखने के प्रतिफल में मूल्यांकन - सीखने के प्रतिफल का कोई अलग से दस्तावेज उपलब्ध नहीं किया जाता है उल्लेखनीय है कि यह स्पाइरल रूप में प्रक्रिया है स्पाइरल प्रक्रिया का आशय है कि अधिगम प्रक्रिया में मूल्यांकन तक पहुंचा जाए एवं न्यून अधिगम क्षेत्र का पता लगाकर पता लगाकर पुुुनः शिक्षण करवाया जाए, इस प्रक्रिया को तब तक जारी रखा जाए जब तक कि सीखने के प्रतिफल पूर्ण रूप से प्राप्त ना हो जाए
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