भाषा दक्षता का विकास
भाषा दक्षता का विकास- भाषा वह शक्ति है जिसके माध्यम से मानव स्वयं को दूसरों के समक्ष के प्रस्तुत करता है
भाषा की प्रमुुख दक्षता निम्न है
सुनना
बोलना
पढ़ना
लिखना
विचारों का बोधन
व्यवहारिक व्याकरण
स्वअधिगम
भाषा प्रयोग
शब्द भंडार पर अधिकार
भाषा के बिंब - जब भी कोई वस्तु, व्यक्ति, शब्द, वर्ण आदि हमारे आंखों के सामने आते हैं तो इनके चित्र हमारे मस्तिष्क में बन जाते हैं और स्थायी हो जाते हैं जिससे ही हमारी भाषा आगे बढ़ती है इसलिए इन्हें भाषा बिंब कहते हैं
★ भाषा बिंब मुख्य रूप से चार प्रकार के होते हैं
1दृश्य बिम्ब -जब भी कोई व्यक्ति वस्तु शब्द हमारी आंखों के सामने होते हैं तो उसी समय उनका चित्र हमारे सामने बन जाता है तो इसे दृश्य बिम्ब कहते हैं
उदाहरण - मेरे सामने से हाथी जा रहा है
2 श्रव्य बिम्ब - जब कोई व्यक्ति वस्तु आदि पहले हमारे द्वारा देखे हुए होते हैं फिर बाद में कभी उनका नाम या आवाज सुनने मात्र से उनका चित्र हमारे मस्तिष्क में बन जाता है तो उसे श्रव्य बिंब कहते हैं
उदाहरण - माँ दरवाजा खोलो शायद बाहर मामा है
3 विचार बिंब - जब कोई दृश्य या श्रव्य बिंब इस प्रकार से हमारे मस्तिष्क में बनने लगता है कि उसकी उपयोगिता महसूस होने लगती है उसे विचार बिम्ब कहते है
उदाहरण - घोड़ा सवारी के काम आता है
4 भाव बिंब - जब हम किसी विचार बिम्ब को आत्मा के संपर्क से बनते हुए पाते हैं तो उसके साथ हमारी भावनाएं जुड़ जाती है इसलिए इससे भाव बिम्ब कहते हैं
जैसे - गाय हमारी माता है
गांधीजी राष्ट्रपिता है
भाषा विकास की अवस्था
प्रथम अवस्था - बालक आसपास के वातावरण से सीख कर ऐसे शब्द बोलने लगता है जिस के अर्थ को वह भले ही समझता हो किंतु सुनने वाला नहीं समझता यह शब्द हमारे लिए निरर्थक हो सकते हैं लेकिन उस बालक के लिए सार्थक होते हैं इस प्रकार वह प्रयत्न करके भाषा सीखने की ओर अग्रसर होता है
दूसरी अवस्था - इसमें बालक बड़ों का अनुकरण करके सार्थक शब्दों का उच्चारण प्रारंभ करने लगता है बालक एक या दो शब्दों में अपनी बात कहता है परंतु उसकी दृष्टि में यह पूर्ण वाक्य होता है
तीसरी अवस्था - बालक संज्ञा और क्रिया शब्दों को मिलाकर उच्चारण करने लग जाता है
चौथी अवस्था - इसमें बालक संज्ञा, क्रिया के साथ-साथ सर्वनाम विशेषण क्रिया-विशेषण और अवयवों का उच्चारण तथा वाक्य में इनका प्रयोग करना प्रारंभ कर देता है भाषा का इतना प्रयोग बालक करीब 3 वर्ष की आयु में करने लग जाता है
बालक में भाषा के अंगों का विकास - भाषा के पांच अंग माने गए हैं
1 शब्द भंडार - स्मिथ के अनुसार - शिशु 1 वर्ष तक लगभग 3 शब्द सीख जाता है उसके बाद उसका शब्द भंडार बढ़ता है जिसकी औसत संख्या इस प्रकार है-
2 वर्ष - 272 शब्द
3 वर्ष - 896 शब्द
4 वर्ष - 1540 शब्द
5 वर्ष - 2072 शब्द
2 वाक्य विन्यास- प्रारंभ में बालक अस्पष्ट बली के साथ एक दो शब्दों वाले वाक्य बोलता है किंतु 5 वर्ष की आयु तक वह पूरे वाक्यों का प्रयोग करने लगता है
3 अभिव्यक्ति - बालक 3 वर्ष की अवस्था तक अस्पष्ट व मौखिक अभिव्यक्ति करता है,किंतु 6 वर्ष की अवस्था तक उसके उच्चारण में स्पष्टता आ जाती है
4 वाचन- बालक 6 से 9 वर्ष की अवस्था में चित्र अक्षरों की सहायता से पढ़ने लगता है
5 लिपि - ध्वनि बिम्ब तथा श्रुति बिंंब के पश्चात 5 वर्ष की आयु के बाद बालक को लेखन कार्य का अभ्यास करवाना चाहिए
भाषा के सिद्धांत-
1 स्वाभाविकता का सिद्धांत - भाषा अर्जित संपत्ति है किंतु इसे सीखने की शक्ति प्रकृति प्रदत्त है बालकों में भाषा को स्वतः स्फुर्ति के माध्यम से सीखने की योग्यता होती है, बालकों स्वाभाविकता का सिद्धांत अधिक काम करता है
2 स्वतंत्रता का सिद्धांत- भाषा पर अधिकार के लिए बालक को पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए वार्तालाप वाद विवाद चर्चा पत्र व्यवहार में बालकों को स्वतंत्रता की अनुभूति हो तथा स्वतंत्र वातावरण में बालक अब अपने मनोभावों को खुलकर प्रकट करता है
3 रुचि का सिद्धांत - शिक्षण को रुचिकर बनाने से छात्रों में उत्साह बढ़ता है तथा बालक भाषा को प्रसन्न चित्त होकर सीखता है रोचक व्याख्यान कवि सम्मेलन अंताक्षरी समारोह आदि के माध्यम से भाषा शिक्षण में रुचि उत्पन्न की जा सकती है
4 व्यक्तिक भिन्नता का सिद्धांत - एक बालक अपनी योग्यता रुचि, अभिवृत्ति, शारीरिक क्षमता में दूसरे बालक से भिन्न होता है भाषा शिक्षण पर अधिकार व्यक्तिगत क्षमता के आधार पर ही संभव है व्यक्तिगत भिन्नता सिद्धांत का पालन करते हुए प्रत्येक बालक की त्रुटि का निदान करना चाहिए
5 बाल केंद्रितता का सिद्धांत शिक्षा का केंद्र बालक है भाषा सीखने में बालक के स्वभाव उसके वातावरण योग्यता का ध्यान रखा जाना चाहिए
6 क्रियाशीलता का सिद्धांत बालक तभी सीख पाता है जब सक्रिय हो, प्रश्नोत्तर के माध्यम से बालक की सक्रियता में वृद्धि की जा सकती है वार्तालाप, वाद - विवाद ,काव्य - पाठ आदि में छात्र सक्रिय रहते हैं
7 अभ्यास का सिद्धांत - भाषा एक कौशल है इसका विकास अभ्यास पर ही निर्भर है, भाषा सीखने की आदत डालना आवश्यक है और आदत अभ्यास का ही परिणाम है
8 चयन का सिद्धांत - भाषा की शिक्षा के अनेक उद्देश्य होते हैं इन्हीं उद्देश्यों के आधार पर व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है सभी उद्देश्यों एवं व्यवहार परिवर्तनों को एक साथ लेकर भाषा की शिक्षा नहीं दी जा सकती, किस उद्देश्य को पहले पूरा करना है किसको बाद में उनका चयन कर उनका एक क्रम बना लेना चाहिए
9 अनुकरण का सिद्धांत - भाषा के शिक्षण में अनुकरण का विशेष महत्व है शिशु अत्यधिक अनुकरणशील होता है यह प्रवृत्ति बाल्यावस्था और किशोरावस्था में भी रहती है वर्णों का उच्चारण अनुकरण पर निर्भर है छात्र अधिकतर शिक्षकों की भाषा का ही अनुकरण करते हैं शिक्षक को आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए और भाषा के प्रयोग में सदा सावधान रहना चाहिए
भाषा के शिक्षण सूत्र
1 ज्ञात से अज्ञात की ओर - इसका प्रयोग प्रस्तावना प्रस्तुतीकरण के दौरान किया जाता है
2 सरल से जटिल की ओर - विषय वस्तु का प्रस्तुतीकरण करने के दौरान
3 पूर्ण से अंश की ओर - गेस्टाल्ट वादियों की देन
4 विश्लेषण से से संश्लेषण की ओर - विषय वस्तु को टुकड़ों में विभाजित करने में सहायक
5 विशिष्ट से सामान्य की ओर - बालकों का ध्यान आकर्षित करने में सहायक
6 आगमन से निगमन की ओर - उदाहरणों के माध्यम से नियमों का प्रतिपादन में सहायक
7 मूर्त से अमूर्त की ओर - शिक्षण में दृश्य श्रव्य सामग्री का प्रयोग इसी सूत्र पर आधारित है
8 अनिश्चित से निश्चित की ओर - बालकों को वास्तविक तथ्यों का ज्ञान करवाने में सहायक
9 अनुभव से विवेक की ओर - करके सीखने में सहायक
10 मनोविज्ञान से तर्क की ओर - बालकों को सीखने के लिए प्रेरित करने में सहायक
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