चिंतन
चिंतन - किसी विषय पर सामान्य सोच विचार करने की क्षमता चिंतन कर लाती है
■ चिंतन मानसिक प्रक्रिया का ज्ञानात्मक पहलू है जिसमें आंतरिक रूप से प्रतिमा, चिह्नों, विचारों आदि के रूप में वस्तुओं और घटनाओं का मानसिक चित्रण करते हुए समस्या का समाधान ढूंढने का प्रयास किया जाता है
■ रॉस के अनुसार- चिंतन मानसिक क्रिया का ज्ञानात्मक पहलू है
■ गेरिट के अनुसार - चिंतन एक अदृश्य व अव्यक्त व्यवहार है जिसमें मुख्य रुप से प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है
■ मोहसीन के अनुसार - चिंतन समस्त समस्या समाधान संबंधी अव्यक्त व्यवहार है
■ वैलेंटाइन के अनुसार - चिंतन शब्द का प्रयोग उन क्रियाओं के लिए किया जाता है जिसमें श्रंखला वध विचार किसी पूर्व निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर आगे बढ़ते हैं
■ कॉलसैनिक के अनुसार - संकल्पनाओं का पुनर्गठन ही चिंतन है
★ चिंतन प्रक्रिया की शुरुआत तब होती है जब व्यक्ति के सामने कोई समस्या आती है और उसका समाधान वह करना चाहता है
चिंतन की प्रकृति
◆ चिंतन सभी प्रकार से एक ज्ञानात्मक प्रक्रिया है
◆ चिंतन एक मानसिक खोज है
◆ चिंतन किसी लक्ष्य या उद्देश्य की ओर अग्रसर होता है
◆ चिंतन समस्या समाधान संबंधी व्यवहार है
◆ चिंतन एक आंतरिक प्रक्रिया है
◆ चिंतन के समय भारी गत्यात्मक क्रियाएं बंद हो जाती है
चिंतन के प्रकार
प्रत्यक्ष चिंतन- प्रत्यक्ष बोध या प्रत्यक्षीकरण इस चिंतन का आधार है
अमूर्त चिंतन - उददीपक की अनुपस्थिति में किया गया चिंतन
तार्किक चिंतन - यह उच्च स्तर का चिंतन है इसमें समस्या का समाधान किया जाता है
★ जिम्बार्डो व रुक ने चिंतन के दो प्रकार बताए हैं
1 स्वली चिंतन - इसमें व्यक्ति अपने काल्पनिक विचारों की अभिव्यक्ति करता है इसमें किसी समस्या का समाधान नहीं होता
उदाहरण - स्वपन, अभिलाषा
2 यथार्थवादी चिंतन- इसका संबंध वास्तविकता से होता है इसके सहारे व्यक्ति किसी भी समस्या का समाधान कर लेता है
यथार्थवादी चिंतन को तीन भागों में बांटा गया है
1अभिसारी चिंतन/निगमनात्मक चिंतन - इस चिंतन में व्यक्ति दिए गए तथ्यों के आधार पर किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की कोशिश करता है
2 अपसारी चिंतन/आगमनात्मक चिंतन/सृजनात्मक चिंतन - इसमें व्यक्ति दिए गए तथ्यों में अपनी ओर से कुछ नया पत्थर जोड़ कर एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचता है
3 आलोचनात्मक चिंतन- इस चिंतन में व्यक्ति किसी वस्तु तथ्य आदि के सारे गुण दोषों को परख लेने के पश्चात ही निष्कर्ष पर पहुंचता है
चिंतन का विकास
◆ चिंतन का विकास भाषा विकास के कुछ समय बाद प्रारंभ हो जाता है
◆ बालक में सर्वप्रथम प्रत्यक्ष-आत्मक चिंतन का विकास प्रारंभ होता है वह अपने चारों ओर मूर्त वस्तुओं के संबंध में चिंतन प्रारंभ करता है
■ पियाजे का विचार है कि 7 वर्ष तक बालक की प्रवृत्ति आत्मकेंद्रित होने के कारण स्वयं के संबंध में ही अधिक चिंतन करता है
★ इसके पश्चात कल्पनात्मक चिंतन तथा उसके बाद प्रत्ययात्मक चिंतन प्रारंभ हो जाता है
■ आयु बढ़ने के साथ-साथ चिंतन में तर्क की प्रधानता बढ़ती जाती है और तार्किक चिंतन का विकास हो जाता है
चिंतन की विशेषता
★ चिंतन में मानसिक प्रक्रिया निहित है
★ चिंतन के लिए किसी प्रकार की समस्या का होना आवश्यक है
★ चिंतन स्थूल से सूक्ष्म की ओर चलता है
★ चिंतन में विश्लेषण में संश्लेषण की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है
★ चिंतन को रुचि, अभिप्रेरणा, संप्रत्यय, वातावरण, भाषा, व्यक्तित्व आदि प्रभावित करते हैं
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