शिक्षण अधिगम प्रक्रिया पार्ट 1

 शिक्षण अधिगम प्रक्रिया 
◆ शिक्षण का अर्थ बालक को शिक्षक के द्वारा विभिन्न विषयों का अधिगम करवाना 

■ शिक्षण व अधिगम में गहरा संबंध है

संकुचित अर्थ - निश्चित समय में निश्चित स्थान पर निश्चित शिक्षण विधियों द्वारा बालक को पूर्व नियोजित ढंग से शिक्षण प्रदान करना 
◆ इस प्रक्रिया में शिक्षक का स्थान महत्वपूर्ण है

शिक्षण के व्यापक अर्थ में - औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों साधनों का प्रयोग सम्मिलित है

■ शिक्षा शब्द अंग्रेजी भाषा के एजुकेशन शब्द का हिंदी रूपांतरण है
◆  एजुकेशन शब्द लेटिन भाषा के एजुकेटम शब्द से निकला है यह दो शब्दों से मिलकर बना है और ड्यूको
■ ई का अर्थ है अंदर से तथा ड्यूको का अर्थ है आगे बढ़ना
★ इस प्रकार शाब्दिक रूप से एजुकेटम का अर्थ है अंदर से बाहर की ओर बढ़ना अथार्थ शिक्षा व्यक्ति की आंतरिक शक्तियों को विकसित करने की प्रक्रिया है

रॉबर्ट गेने के अनुसार - शिक्षण का तात्पर्य अधिगम की दशा को व्यवस्थित करना जोकि अधिगम अधिगमकर्ता की
बह्ययता से संबंधित है
बर्ट के अनुसार- शिक्षण अधिगम हेतु प्रेरणा, पथ प्रदर्शक व प्रोत्साहन है

डंकन के अनुसार - शिक्षण चार चरणों वाली प्रक्रिया है 1 योजना 2 निर्देशन 3 मापन 4मूल्यांकन

स्मिथ के अनुसार -  शिक्षण क्रियाओं की एक ऐसी विधि है जो सीखने की उत्सुकता जागृत करती है

फ्रोबेल के अनुसार - माताएं आदर्श अध्यापिका है तथा परिवार द्वारा  दी जाने वाली अनौपचारिक शिक्षा प्रभावशाली व स्वाभाविक है

■ शिक्षण की विशेषताएं
◆ शिक्षण एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है
◆ शिक्षण निर्देशन की प्रक्रिया है
◆ शिक्षण अध्यापक के मध्य स्वस्थ व मधुर संबंध है
◆ शिक्षण कौशल पूर्ण प्रक्रिया है
◆ शिक्षण पथ प्रदर्शन है
◆ शिक्षण एक तार्किक क्रिया है
◆ शिक्षण एक औपचारिक व अनौपचारिक क्रिया है
◆ शिक्षण का कार्य ज्ञान में विकास करना है
◆ शिक्षण का मापन किया जा सकता है
◆ शिक्षण वातावरण में समायोजित होने की योग्यता उत्पन्न करती है
◆ शिक्षण एक उपचार विधि है 
◆ शिक्षण आमने सामने वाली प्रक्रिया है 
◆ शिक्षण एक विकासात्मक प्रक्रिया है
◆ शिक्षण एक सामाजिक प्रक्रिया है

शिक्षण के उपागम

1 हरबर्ट उपागम/ स्मृति स्तर
 ■ प्रतिपादक - हरबर्ट 
 ■ शिक्षक का प्रमुख स्थान 
 ■ वस्तुनिष्ठ प्रश्नों द्वारा मूल्यांकन

2 मॉरीसन उपागम/अवबोध स्तर - प्रतिपादक - मॉरीसन 
 ■ शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों सक्रिय
 ■ वस्तुनिष्ठ, लघुरात्मक व निबंधात्मक प्रश्नों द्वारा मूल्यांकन

3 हंट उपागम चिंतन स्तर-
 ■  प्रतिपादक - हंट 
 ■  समस्या समाधान पर आधारित 
 ■  मौलिक चिंतन का विशेष महत्व
 ■  बालक सर्वाधिक सक्रिय
 ■ मूल्यांकन हेतु निबंधात्मक प्रश्नों का समावेश

शिक्षण के चर- 
 1  स्वतंत्र चर
 2  मध्यस्थ चर
 3  आश्रित चर

शिक्षण के सिद्धांत- 

1 जीवन से संबंध स्थापित का सिद्धांत - विषय वस्तु को छात्रों के वास्तविक जीवन से जोड़कर पढ़ाया जाना चाहिए क्योंकि जीवन में संबंध स्थापित किए बिना मानवीय संबंधों को समझना कठिन है

 2 रुचि का सिद्धांत - शिक्षण को सफल व प्रभावशाली बनाने के लिए यह आवश्यक है कि विषय वस्तु में छात्रों की रुचि उत्पन्न की जाए जब छात्रों में रुचि उत्पन्न हो जाएगी तब बेहतरीन होकर उसका सरलता से ज्ञान प्राप्त कर लेगा

3 प्रेरणा का सिद्धांत - प्रेरणा व्यक्ति की वह आंतरिक शक्ति है है जो उसे एसी क्रियाशीलता उत्पन्न करती है जो लक्ष्य की प्राप्ति तक चलती है प्रेरित हो जाने पर बालक एवं क्रियाशील हो जाता है जिससे वह अपने कार्य में रुचि लेने लगता है उससे उसके सीखने की प्रक्रिया सरल व तीव्र हो जाती है

4 क्रियाशीलता का सिद्धांत - बालक स्वभाव से क्रियाशील होते हैं वे हर समय कुछ ना कुछ करते रहते हैं अतः उसे करके सीखने का अवसर देना चाहिए

5 चयन का सिद्धांत - इस सिद्धांत का अर्थ है कि ज्ञान अति विस्तृत है अतः छात्रों की योग्यता रुचि व आवश्यकता के अनुसार उसमें केवल उपयोगी व लाभप्रद बातों का चयन करना चाहिए

6 नियोजन का सिद्धांत- अध्यापक द्वारा चुनी हुई प्रमुख बातों को छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करने से पूर्व उनको नियोजित करना अनिवार्य है क्योंकि नियोजन अपव्यय को रोकता है यह शिक्षक को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध होने में सहायता देता है

7 विभाजन का सिद्धांत - शिक्षक को अपनी विषय वस्तु को सरल बनाने के लिए उसका प्रस्तुतीकरण विभिन्न पदों में करना चाहिए

8 लोकतांत्रिक व्यवहार का सिद्धांत -शिक्षक को शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए छात्र केंद्रित वातावरण बनाना चाहिए 

9 आवृत्ति का सिद्धांत आवृत्ति सीखे गए ज्ञान को 
स्थाई बनाने में सहायक है, अतः सीखे गए ज्ञान को समय अनुसार दोहराना चाहिए नहीं तो बालकों  स्मृति चिन्ह समय के अनुसार धुंधले हो जाएंगे और दोहरान के अभाव में बालक सिखा गया ज्ञान भूल जाएगे

10 निश्चित उद्देश्य का सिद्धांत-  प्रत्येक पाठ का एक निश्चित उद्देश्य होता है शिक्षक को निश्चित उद्देश्य के आधार पर बालकों को ज्ञान प्रदान करना चाहिए

11 व्यक्तिक विभिन्नताओ का सिद्धांत- सभी बालक बुद्धि योग्यता क्षमता और अभिरुचि में एक समान नहीं होते अतः शिक्षक के लिए यह आवश्यक है कि वह बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओ को ध्यान में रखते हुए ज्ञान प्रदान करें

12 पूर्व ज्ञान का सिद्धांत-  बालक के नवीन ज्ञान को पूर्व ज्ञान से जोड़कर शिक्षण करवाने पर शिक्षण में नवीनता, प्रभावशीलता  व क्रमबद्धता का विकास होता है

13 छात्र केंद्रित शिक्षा का सिद्धांत- शिक्षण तभी सफल माना जाता है जब वह विद्यार्थी को सक्रिय रखते हुए किया जाता है और विद्यार्थी की रूूचि, अभिरुचि और सीखने की क्षमता के अनुसार अनुसार व्यवस्थित रहता है

शिक्षण सूत्र- अधिगम के क्षेत्र में शिक्षण की प्रभावशीलता वह सफलता के लिए कुछ शिक्षण सूत्रों की चर्चा पर ध्यान दिया जाना चाहिए शिक्षण को प्रभावी बनाने के लिए निमन सूत्रों का पालन करना चाहिए

1 ज्ञात से अज्ञात की ओर- बालक अपने पूर्व ज्ञान के आधार पर नवीन ज्ञान को ग्रहण करता है अतः अध्ययन के लिए आवश्यक है कि किसी पाठ को पढ़ाने से पहले इस बात का पता लगा लेना चाहिए कि बालक हो उस विषय का कितना ज्ञान है

2 सरल से जटिल की ओर- इस सूत्र का अर्थ यह है कि बालक को पहले विषय की सरल बातें बताई जाए उसके बाद ही जटिल बातों का ज्ञान कराया जाना चाहिए इस संबंध में यह बात ध्यान रखनी चाहिए की सरल बालक के दृष्टिकोण से होने चाहिये, न की शिक्षक के, क्योंकि जो बात बालक के दृष्टिकोण से कठिन है हो सकता है कि शिक्षक के दृष्टिकोण में सरल हो

3 विशिष्ट से सामान्य की ओर- इस शिक्षण सूत्र को आगमन से निगमन की ओर भी कहा जाता है एक अच्छा शिक्षक अपने शिक्षण का प्रारंभ आगमन से करके निगमन में समाप्ति का संकेत देता है इस शिक्षण सूत्र को उदाहरण से नियम की ओर भी कहते हैं

4 पूर्ण से अंश की ओर- बालकों की यह एक नैसर्गिक प्रवृत्ति है कि वह पहले समग्र वस्तु के दर्शन करता है उसके पश्चात उसके भागो व उपभेदों को जानता है ज्ञान प्रदान करने की विधि में पहले पूर्ण वस्तु पर ध्यान दिया जाता है उसके पश्चात उसके हिस्से पर अवदान केंद्रित होता है

5 प्रत्यक्ष को प्रमाण की ओर - बालक के सामने उपस्थित प्रत्यक्ष वस्तुओं के बारे में बता कर उसके बाद अप्रत्यक्ष साधनों के माध्यम से ज्ञान प्रदान करना चाहिए

6 विश्लेषण से संश्लेषण की ओर - शिक्षण कार्य के दौरान विश्लेषण एवं संश्लेषण दोनों की ही आवश्यकता होती है विश्लेषण से संश्लेषण की क्रिया में वस्तु का पहले अध्ययन किया जाता है इसके उपरांत प्रत्येक तत्व अवयव के अध्ययन पर बल दिया जाता है विश्लेषण का तात्पर्य तत्वों को संयोजित करके पुुनः उसका विभाजन करना है तथा संश्लेषण से आशय तत्वों का परस्पर संबंध कायम करना है

7 अनिश्चित से निश्चित की ओर-  प्रारंभिक अवस्था के दौरान बालक का ज्ञान अनिश्चित और स्पष्ट होता है इसी शिक्षण सूत्र के आधार पर शिक्षक उनके ज्ञान को धीरे-धीरे पुष्पित व पल्लवित करता है

8 अनुभव से तर्क की ओर

9 मनोवैज्ञानिकता से तार्किकता की ओर




















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