■ किसी विषय वस्तु को अर्थ ग्रहण करते हुए मनोयोग पूर्वक सुनना श्रवण कौशल कहलाता है
★ श्रवण कौशल का अर्थ है बालक में ऐसी क्षमता का विकास करना जिससे वह किसी कथन या बात को सुनकर, चिंतन - मनन कर उस कथन या बात पर उचित निर्णय ले सके
★ यह अधिगम के अवयवों में प्रथम स्थान रखता है
■ एक सर्वे में पाया गया कि जितने नहीं बोलने वाले/ गूंगे व्यक्ति थे उनमें से 95% वे थे जो बहरे थे अथार्थ सुनने की क्षमता नहीं होने से वे बोलना नहीं जानते थे
◆सुनना कौशल के विकास के अंतर्गत निम्न विशेषताएं अति आवश्यक है
1 अंतरबोध - जो आवाज या ध्वनि सुनाई दे रही है उसमें जो अंतर है उसको समझना
जैसे- क, ख, ग की ध्वनि का अंतर
2 धारण शक्ति - जो सुनते समय समझ में आ रहा है उसको अपने व्यवहार में सीख लेना, स्मरण रखना या धारण कर लेना की शक्ति इसी प्रकार से विषय वस्तुु को सुनते हुए ध्यान पूर्वक सुनना
3 अवबोध शक्ति- बोले गए शब्द की ध्वनि के आधार पर उसकी रचना का बोध होना
जैसे- क+अ+म+अ+ल+अ = कमल
श्रवण कौशल विकसित करने के उपाय -
◆ कक्षा शिक्षण के क्रम में बालक को कहानी कविता बाल गीत आदि के माध्यम से कौशल का विकास करना
◆ सह शैक्षिक गतिविधियों में ऐसे क्रियाकलापों को शामिल किया जाए जो श्रवण कौशल का विकास करें
◆ बालक को शुद्ध उच्चारण अभ्यास व्याकरण की शिक्षा के माध्यम से करवाया जाए
◆ इस कौशल के विकास हेतु बालकों को एकाकी अभिनय के ज्यादा से ज्यादा अवसर दिए जाने चाहिए
◆ बालक को एकल गायन कविता पाठ आदि के अवसर भी प्रदान करने चाहिए अध्यापक द्वारा ज्यादा से ज्यादा आदर्श कथन कहे जाने चाहिए
◆ अध्यापक को कक्षा में पढ़ाते समय गीत शैली अपनानी चाहिए ताकि प्राथमिक स्तर पर अच्छा प्रभाव स्थापित किया जा सके
◆ बालकों को संवाद के ज्यादा से ज्यादा अवसर प्रदान करनी चाहिए उन्हें वाद विवाद वह अंताक्षरी में भाग लेने हेतु प्रेरित करना चाहिए
◆ इस कौशल का विकास परिवारजनों समाज के लोगों विद्यालय शिक्षकों मित्र मंडली में चयनित व्यक्तियों द्वारा होता है
श्रवण कौशल शिक्षण के उद्देश्य
◆ सुनकर अर्थ ग्रहण करने की योग्यता का विकास करना
◆ श्रुत सामग्री को मनोयोग पूर्वक सुनने के लिए प्रोत्साहित करना
◆ वक्ता के मनोभावों को समझने की योग्यता उत्पन्न करना
◆ बालकों में भाषा व साहित्य के प्रति रुचि पैदा करना
■ कम सुनने या उनका सुनने वाले बच्चों हेतु आगे की पंक्ति में बैठने की व्यवस्था करनी चाहिए
■ शिक्षण में विशेष उपकरणों व साधनों का प्रयोग करना चाहिए
■ सहपाठी द्वारा अनु शिक्षण करवाने की व्यवस्था करनी चाहिए
■ शिक्षक पढ़ाते समय अधिक से अधिक दृश्य संकेतों और दृश्य सामग्री का प्रयोग करें
2 बोलना कौशल- यह कौशल अभ्यास व अनुकरण का गुणज माना जाता है
● इस कौशल के विकास हेतु बालक को ज्यादा से ज्यादा सुनने के अवसर प्रदान करने चाहिए
● बालक को वाद-विवाद, संवाद व अंताक्षरी में भाग लेने हेतु प्रेरित करना चाहिए
● अध्यापक को चाहिए कि वह वाणी का उचित आरोह अवरोह तथा स्पष्ट रूप से व्याख्यान प्रस्तुत करें
● बालक को सही वातावरण उपलब्ध कराया जाना चाहिए
● वार्तालाप में मुहावरे और लोकोक्ति का भी उचित स्थान देना चाहिए
● यदि बालक उच्चारण की शुद्धता करे तो उसे रोककर शुद्ध उच्चारण का अभ्यास कराया जाना चाहिए
■ एक बालक या व्यक्ति जैसा सुनता है वैसा ही बोलता है, अथार्थ बोलना कौशल सुनना कौशल पर आधारित होता है
बोलना कौशल में आने वाली कठिनाइयां
1 शारीरिक दोष- जब एक व्यक्ति में हकलाना, तुतलाना जैसे शारीरिक दोष होते हैं तो वह निम्न प्रकार से उच्चारण दोष करता है हकलाने वाला पवन को प्प्प्पवन, तुतलाने वाला टमाटर को तमातल बोलता है
2 भौगोलिक कारक- उच्चारण करने में भौगोलिक कारक भी प्रभावकारी होते हैं जैसे पंजाब क्षेत्र में पुत्र को पुत्तर बोलते हैं
3 मुखसुख - कई बार व्यक्ति अपने मुखसुख के कारण भी शब्दों को शुद्ध प्रकार से उच्चारित नहीं कर पाता है
जैसे - अधिकतर लोग भृतहरि को भरतरी बोलते हैं
4 सामाजिक कारक- सामाजिक व्यवस्थाओं में भी शब्दों को या नामों का विकृत रूप से उधारण करते रहते हैं जैसे परशुराम को परशया बोलते हैं
वाचन कौशल को प्रभावशाली बनाने के लिए निम्नलिखित विशेषताएं होनी चाहिए -
■भाषा में शुद्धता स्पष्टता व्यवहारिकता होनी चाहिए
■भाषा विषय तथा अवसर के अनुकूल होनी चाहिए
■अभिव्यक्ति मधुर शिष्टाचार युक्त तथा शुद्ध उच्चारण वाली होनी चाहिए
■ सामान्य बातचीत अनौपचारिक वाचन कौशल के अंतर्गत आती है
■ शुद्धता अस्पष्टता और संकोच रहित यह 3 गुण वाचन में होते हैं
■ भाषा का ग्रहण पक्ष जितना सरल होता है अभिव्यक्ति पक्ष उतना ही जटिल होता है
वाचन कौशल के विकास की प्रक्रिया
● अनौपचारिक वार्तालाप
● विचार विमर्श
● गायन प्रतियोगिता
● नाटक में अभिनय
● वाद विवाद प्रतियोगिता
● धन्यवाद ज्ञापन, परिचय प्रस्तुतीकरण, स्वागत कथन
● कहानी कथन
● भाषण प्रतियोगिता
सुनना व बोलना कौशल की विधियां
1 व्याख्या विधि
2 कथाकथन विधि
3 संभाषण विधि
4 वाद विवाद विधि
5 भाषा यंत्र विधि
3पढ़ना/पठन कौशल - विषय वस्तु को अर्थ ग्रहण करते हुए मनोयोग पूर्वक पढ़ना पठन कौशल कहलाता है◆ यह सुनना व बोलना कौशल की तुलना में कठिन होता है
◆ विकास क्रम की स्थिति में इसका तीसरा स्थान है लेकिन मारिया मांटेसरी इसे अंतिम कौशल मानती है
■ इस कौशल द्वारा प्राप्त ज्ञान ज्यादा समय तक स्थायी रहता है
अतः इसे सर्वाधिक महत्वपूर्ण व स्थायी कौशल कहा जाता है
★ पठन की प्रक्रिया को चार भागों में विभाजित किया गया है
1 प्रत्याभिज्ञान
2 अर्थ ग्रहण
3 अनुप्रयोग
4 मूल्यांकन और प्रतिक्रिया
पठन कौशल में आने वाली कठिनाइयां
★ वर्ण पहचान में कठिनाई
★ बालक को वर्णों के उच्चारण स्थान का ज्ञान न होना
★ जिहवा दोष या दिव्यांगता
★ बालकों को होने वाली शंका
★ कठिन शब्दों के पठन में परेशानी
★ पूर्वाग्रह से ग्रसित
★ प्रयत्नलाघव (शब्द को छोटा करना)
★ क्षेत्रियता का प्रभाव
★ विद्यार्थी को व्याकरण के ज्ञान का अभाव
★ नाक से पठन (गुनगुनाते हुए)
पठन कौशल के विकास हेतु प्रयास-
● इस कौशल के विकास हेतु बालक को वर्णों का व उनके उच्चारण स्थानों का परिचय कराना चाहिए
● बालकों को व्याकरण का ज्ञान प्रदान करना चाहिए
● ध्वनि संकेत व विराम चिन्हों का ज्ञान भी करान चाहिए
● कठिन शब्द व उनके शब्दार्थ का अर्थ बताते हुए बार-बार अभ्यास कराया जाना चाहिए
● सरल से कठिन की ओर पढ़ाना चाहिए
● अध्यापक द्वारा आदर्श रूप में स्पष्ट पठन करना चाहिए
● बालकों को ज्यादा से ज्यादा व स्वतंत्र पठन करने देना चाहिए
● पठन के समय उचित आरोह अवरोह का ज्ञान भी बालक को प्रदान करना चाहिए
पठन के प्रकार
1 व्यक्ति की संख्या के आधार पर
(A) व्यक्तिगत पठन - एक समय में एक ही व्यक्ति द्वारा जो पठन किया जाता है वह व्यक्तिगत पठन कहलाता है
यह स्वयं उन दोनों रूपों में होता है या शिक्षक तथा शिक्षार्थी दोनों के द्वारा किया जाता है
(B) सामूहिक पठन - एक से अधिक छात्रों द्वारा किया गया पठन सामूहिक पठन कहलाता है
यह केवल शिक्षार्थी द्वारा किया जाता है
● सामूहिक पठन केवल सस्वर तो होता है लेकिन मौन नहीं होता, क्योंकि यदि सामूहिक पठन को मौन रूप दिया जाए तो वह सामूहिक होते हुए भी व्यक्तिगत बन जाता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक विद्यार्थी की पढ़ने की स्वगति अलग-अलग होती है
2 ध्वनि के आधार पर
(A) सस्वर वाचन- आवाज के साथ विषय वस्तु को पढ़ना सस्वर वाचन कहलाता है
सस्वर वाचन शिक्षक व शिक्षार्थी दोनों द्वारा किया जाता है
इस वाचन के दो रूप होते हैं
(अ) आदर्श वाचन - कक्षा अध्यापक द्वारा विषय वस्तु को उचित आरोह अवरोह, पढ़ना आदर्श वाचन के लाता है यह व्यक्तिगत होता है
(ब) अनुकरण वाचन- अध्यापक द्वारा प्रस्तुत आदर्श वाचन को विद्यार्थियों द्वारा ठीक वैसा ही वाचन करना अनुकरण वाचन है
● यह व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों प्रकार का होता है
(B) मौन वाचन- विषय वस्तु को बिना आवाज के या बिना ध्वनि के पढ़ना मौन वाचन कहलाता है
◆ यह पांचवी कक्षा से आरंभ किया जाना चाहिए
Note- अध्यापक द्वारा यह यह वाचन पूर्व तैयारी के रूप में किया जाता है
■ कक्षा कक्ष में मौन वाचन केवल विद्यार्थियों द्वारा किया जाता है
मौन वाचन के प्रकार
★ गंभीर मौन वाचन - किसी भी सारगर्भित विषय वस्तु का गहन अर्थ ग्रहण करने हेतु बालक द्वारा किया जाने वाला बिना ध्वनि का वाचन के गंभीर मौन वाचन कहलाता है
★ द्रुत मौन वाचन- किसी विषय वस्तु का दोहरान या विषय वस्तु का पठन-पाठन में किसी शब्द को ढूंढना आदि इन क्रियाओं के लिए किया गया वाचन द्रुत मौन वाचन कहलाता है
◆ मौन वाचन का उद्देश्य विद्यार्थियों में स्वाध्याय की प्रवृत्ति विकसित करना,कक्षा में अनुशासन स्थापित करना तथा पाठ्यक्रम को शीघ्र पूरा करना होता है
पठन कौशल की विधियां-
◆ वर्ण पठान विधि
◆ शब्द पठन विधि
◆ वाक्य पठन विधि
◆ आदर्श अनुकरण विधि
◆ चित्र पठन विधि
◆ ध्वनि साम्य विधि
◆ भाषा प्रयोगशाला विधि
◆ साहचर्य विधि
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