मनोसामाजिक विकास सिद्धांत

 मनोसामाजिक विकास सिद्धांत :

प्रतिपादक - एरिक इरिक्सन

प्रारंभिक दशा में इरिक्सन वह फ्रॉड के सिद्धांत में काफी समानता थी तथा इरिक्सन, सिगमंड फ्रायड के सिद्धांत का समर्थक भी था

★ इरिक्सन  ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘childhood and           society, 1963’ में मनोसामाजिक विकास की 8 अवस्थाएं    बताई- 

1- विश्वास बनाम अविश्वास  (0 से 2 वर्ष)

2- स्वतंत्रता बनाम लज्जा   (3 से 4 वर्ष)

3- पहल बनाम दोषिता    (5 से 6 वर्ष)

4- परिश्रम बनाम हीनता  (7 से 12 वर्ष)

5 पहचान बनाम भूमिका भ्रांति (13 से 19 वर्ष)

6 घनिष्ठता बनाना अलगाव  ( 19 से 35 वर्ष)

7 उत्पादकता बनाम निष्क्रियता  (36 से 55 वर्ष)

8 ईमानदारी बनाम निराशा ( 55 वर्ष के बाद)



एरिक्सन के सिद्धांत के गुण- 

  1. समाज एवं व्यक्ति की भूमिका पर बल- एरिक्सन के व्यक्तित्व सिद्धान्त की सबसे खूबसूरत बात यह है कि इन्होंने व्यक्तित्व के विकास एवं संगठन को स्वस्थ करने में सामाजिक कारकों एवं स्वयं व्यक्ति की भूमिका को समान रूप से स्वीकार किया हैै
  2. किशोरवस्था को महत्त्वपूर्ण स्थान- एरिकसन  किशोरावस्था व्यक्तित्व के विकास की अत्यन्त संवेदनशील अवस्था होती है। इस दौरान अनेक महत्त्वपूर्ण शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक परिवर्तन होता है
  3. आशावादी दृष्टिकोण -एरिक्सन का मानना है कि प्रत्येक अवस्था में व्यक्ति की कुछ कमियाँ एवं सामथ्र्य होती है। अत: व्यक्ति यदि एक अवस्था में असफल हो गया तो इसका आशय यह नहीं है कि वह दूसरी अवस्था में भी असफल ही होगा, क्योंकि खामियों के साथ-साथ सामथ्र्य भी विद्यमान है, जो प्राणी को निरन्तर आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती है। 
  4. जन्म से लेकर मृत्यु तक की मनोसामाजिक घटनाओं को शामिल करना- एरिक्सन ने अपने सिद्धान्त में व्यक्तित्व के विकास एवं समन्वय की व्याख्या करने में व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक की मनोसामाजिक घटनाओं को शामिल किया है, जो इसे अन्य सिद्धान्तों से अत्यधिक विशिष्ट बना देता है। 


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